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मौद्रिक नीति समिति की बैठक
■ लगातार 10वीं बार रीपो दर को 6.5 फीसदी पर रखा बरकरार
■ मुद्रास्फीति और वृद्धि अनुमान में भी बदलाव नहीं
■ शक्तिकांत दास ने कहा कि उच्च ब्याज दर का वृद्धि पर असर नहीं
■ एसएमई को फ्लोटिंग दर वाले सावधि ऋणों को समय से पहले काने पर नहीं देना होगा शुल्क चुक
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यों वाली पुनर्गठित मौद्रिक नीति समिति ने लगातार 10वीं बार रीपो दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय किया। मगर उसने मई 2022 में दर वृद्धि का वक्र शुरू होने के बाद पहली बार अपने रुख को बदलकर तटस्थ करने का फैसला किया है। चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर और मुद्रास्फीति के अनुमान में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है।
केद्रीय बैंक रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही बढ़ती मुद्रास्फीति को कम करने पर जोर दे रहा था मगर अब वृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों को ध्यान में रखा जाएगा। आर्थिक गतिविधियों में नरमी की आशंका के मद्देनजर आरबीआई के नीतिगत रुख में बदलाव इसका संकेत है।
बाजार के भागीदार अब उम्मीद कर रहे हैं कि रुख में बदलाव के बाद दिसंबर में होने वाली नीति समीक्षा बैठक में दर कटौती की जा सकती है।
मौद्रिक नीति समिति के 5 सदस्यों ने दर को यथावत बनाए रखने के पक्ष में वोट किया जबकि बाहरी सदस्य नागेश कुमार ने रीपो दर में 25 आधार अंक की कटौती करने के पक्ष में मत दिया। रुख को तटस्थ करने पर सभी सदस्य एकमत थे।
Denne historien er fra October 10, 2024-utgaven av Business Standard - Hindi.
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'अर्थव्यवस्था दे रही निवेश पर अच्छा रिटर्न'
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) बिकवाली पर चिंता को दूर द्वारा करते हुए सोमवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था निवेशकों को अच्छा रिटर्न दे रही है। यही वजह है कि विदेशी निवेशक मुनाफा काटने के लिए शेयरों की बिकवाली कर रहे हैं।
छोटे सबसे ज्यादा पिटे, आगे और घटेंगे?
पिछले कुछ महीनों में स्मॉलकैप शेयरों पर भारी बिकवाली का दबाव है। इस कारण नैशनल स्टॉक एक्सचेंज पर निफ्टी स्मॉलकैप 100 और निफ्टी स्मॉलकैप 250 सूचकांक पिछले सप्ताह मंदी की गिरफ्त में चले गए। अपने-अपने सर्वोच्च स्तरों से 20 फीसदी से अधिक की गिरावट पर मंदी की चपेट में माना जाता है।
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उद्योग जगत में श्रमिकों की कमी का दर्द
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू किए अभी एक साल ही हुआ था कि चीनी उद्योग से जुड़े एक बड़े उद्योगपति बजट पेश होने के बाद टेलीविजन पर एक कार्यक्रम में अनोखी शिकायत करते नजर आए। उन्होंने कहा कि नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (इसका शुरुआती नाम यही था मगर 2009 में इसके आगे 'महात्मा गांधी' जुड़ गया और नाम मनरेगा हो गया) की वजह से उन्हें उस साल गन्ने की कटाई के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे हैं। पंजाब से खबरें आईं कि वहां के किसानों को भी खरीफ की कटाई के दौरान ऐसे ही संकट का सामना करना पड़ा।