रिजर्व बैंक ने इस साल बढ़ाया निगरानी का दायरा
Business Standard - Hindi|December 28, 2024
ग्राहकों के हित को सर्वोपरि रखते हुए केंद्रीय बैंक ने उन पर पूरे साल सख्ती दिखाई, जो नियमों का अक्षरशः पालन नहीं कर रहे थे। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय
तमाल बंद्योपाध्याय

साल 2024 अब आखिरी पड़ाव पर है, इसलिए देखते हैं कि भारत के वित्तीय क्षेत्र के लिए यह साल कैसा रहा। नीतिगत दरों में साल भर कोई बदलाव नहीं हुआ और यह 6.5 प्रतिशत बनी रही। किंतु भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की अक्टूबर और दिसंबर में हुई आखिरी दो बैठकों में कुछ हरकत देखी गई क्योंकि आर्थिक वृद्धि और महंगाई का समीकरण बदलने लगा था। साल भर सख्ती दिखाते आए रिजर्व बैंक ने अक्टूबर में अपना नीतिगत रुख 'तटस्थ' कर लिया और कुछ भी नया नहीं करने का फैसला किया। इसके फौरन बाद दिसंबर में उसने बैंकों का नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) घटा दिया ताकि बाजार में और पैसा आ सके।

गुजरते साल की घटनाओं और रुझानों पर विचार करने से पहले हमें कुछ आंकड़ों पर विचार करना चाहिए। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर 2023 में 5.69 प्रतिशत थी। जनवरी 2024 में यह कम होकर 5.10 प्रतिशत रह गई और जुलाई में तो गिरकर 3.6 प्रतिशत पर टिक गई। पिछले पांच साल में यह सीपीआई महंगाई का दूसरा सबसे कम आंकड़ा था और रिजर्व बैंक के सहजता वाले दायरे में काफी नीचे आ रहा था। लेकिन खाद्य कीमतें बढ़ने के साथ ही अक्टूबर में यह 14 महीने के सबसे ऊंचे आंकड़े 6.2 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह आंकड़ा केंद्रीय बैंक के महंगाई लक्ष्य को लाँघ गया था। नवंबर में यह एक बार फिर घटकर 5.47 प्रतिशत रहा।

देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि की रफ्तार भी लगातार धीमी होती रही है। वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मार्च तिमाही के दौरान 7.76 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जो जून तिमाही में घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई और सितंबर तिमाही में तो लुढ़ककर केवल 5.36 प्रतिशत पर टिक गई। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था में लगातार तीसरी तिमाही में धीमी वृद्धि रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था, बैंकिंग और वित्त का संकेत देने वाले दूसरे पैमाने क्या कह रहे हैं?

Denne historien er fra December 28, 2024-utgaven av Business Standard - Hindi.

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