
हाल में बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक बैठक में पूरी चर्चा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर स्वास्थ्य सेवा एवं होटल कारोबार पर पड़ने वाले प्रभाव पर ही केंद्रित रही। हालांकि कोई भी निश्चित रूप से नहीं कह सकता है कि इसका परिणाम क्या होगा, इससे लोगों की नौकरियां जाएंगी या रोजगार के मौके तैयार होंगे या दोनों ही स्थिति बन सकती है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि एआई हमारे रहने और काम करने के तरीके को तेजी से बदल देगी, शायद पिछले 25 वर्षों में कनेक्टिविटी से जुड़ी जो क्रांति देखी गई है, यह उससे भी तेज होगा।
यह क्रांति धीरे-धीरे शुरू हुई और फिर तूफान बन गई। चाहे वह 2जी से 5जी दूरसंचार सेवाओं का विकास हो, स्थानीय किराना दुकानों से ऑनलाइन खरीदारी की ओर बढ़ना हो, यूपीआई भुगतान का बढ़ता उपयोग हो, महामारी के बाद घर से काम करने के लिए वर्चुअल मीटिंग पर निर्भरता बढ़ना हो, या बड़े पर्दे की जगह ओटीटी को अपनाने की बात हो, इस इंटरनेट कनेक्टिविटी क्रांति ने पूरे खेल को बदल कर रख दिया है और सभी को स्मार्टफोन के माध्यम से सारी सुविधाएं मिल रही हैं।
इन सबकी शुरुआत 2000 के दशक से पांच वर्ष पहले हुई थी जब भारत में मोबाइल फोन सेवाओं की शुरुआत हुई थी। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने 31 जुलाई, 1995 को कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से पहली सेलफोन कॉल, नई दिल्ली में बैठे संचार मंत्री सुखराम को की थी।
सदी के अंत में संचार सेवाओं को एक साथ लाने का प्रयास हुआ। कई मंत्रालयों की उच्च स्तरीय बैठक के बाद संचार अभिसरण (कन्वर्जेस) विधेयक, 2000 का मसौदा तैयार किया गया था। बैठकों में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने हिस्सा लिया था और मंत्रिसमूह की अध्यक्षता की। इस विधेयक का उद्देश्य प्रसारण, इंटरनेट और दूरसंचार सेवाओं को एक साथ लाने के लिए नियामकीय ढांचा तैयार करना था। यह प्रस्तावित विधेयक अमेरिका और मलेशिया जैसे देशों के समान कानूनों से प्रेरित था।
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