राष्ट्रीय राजधानी सर्दियों में गैस चैंबर नहीं बने इसके लिए राज्य और केंद्र स्तर पर साल दर साल अनेक योजनाएं बनाई गईं, लेकिन इस बार फिर स्माग की चादर में लिपटी दिल्ली ने न केवल इन योजनाओं पर सवालिया निशान लगाया बल्कि सरकारों को आइना दिखा दिया। न पराली जलना बंद हुई, न वाहनों का धुआं खत्म हुआ, न धूल उड़नी बंद हुई, न टूटी सड़कें बनीं और न ही सड़कों पर जाम खत्म हो सका। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इस कटु सत्य पर मुहर लगा दी है।
पर्यावरणविदों के मुताबिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए कागजों पर बड़ी-बड़ी योजनाएं बना दी जाती हैं। प्रेसवार्ता सहित अलग-अलग मंचों पर उनकी घोषणाएं कर वाहवाही भी बटोर ली जाती है, लेकिन धरातल पर ईमानदारी से योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। कुछ योजनाएं तो इस हद तक अव्यावहारिक हैं कि उपहास का विषय बन गई हैं। मसलन, अच्छे से चल रहे वाहनों का पीयूसी सर्टिफिकेट मांगा जाता है जबकि धुआं छोड़ रहे वाहन बेखौफ सड़कों पर दौड़ते दिखाई दे रहे हैं। कोयला एवं लकड़ी जलाने पर प्रतिबंध है, लेकिन हर ढाबे पर यह जलता मिल रहा है। इसी तरह सुबह के वक्त विभिन्न इलाकों में सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाकर खुद कूड़े के ढेर में आग लगा देते हैं तो औद्योगिक क्षेत्रों में रात में कचरा जलाया जा रहा है।
स्माग टावरों का घुटा दम, एक ही शुरू हो सका
दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए लगाए गए स्माग टावर खुद ही हांफ गए हैं। दो में से एक टावर ही बृहस्पतिवार को शुरू हुआ। सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एक स्माग टावर बाबा खडग सिंह मार्ग पर अगस्त 2021 में लगाया गया तो दूसरा आनंद विहार में सितंबर 2021 में शुरू किया गया। पहला दिल्ली और दूसरा केंद्र सरकार ने स्थापित किया। दो वर्षों में आइआइटी-मुंबई और आइआइटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं की टीम ने स्वच्छ वायु प्रदान करने में इन स्माग टावरों की दक्षता और मुख्य प्रदूषक तत्व कम करने में इनके प्रदर्शन का अध्ययन किया है।
सार्वजनिक परिवहन की मजबूती को बसें नहीं खरीदीं
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