मध्यप्रदेश के 193 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर की जीत हार का खेल जातिया बिगाड़ देती है। इन विधानसभा क्षेत्र में कुछ जातियां इतनी प्रभावित है कि उनके समर्थन से कोई भी हारता हुआ प्रत्याशी भी चुनाव में जीत दर्ज कर देता है। अब जब चुनाव करीब आ गए हैं तो दोनों राजनीतिक दल इस जातिगत गणित पर फोकस कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश में जाति की राजनीति कितनी हावी है, इसका अनुमान शिवराज सरकार के हालिया मंत्रिमंडल विस्तार से लगाया जा सकता है। भले ही यह भाजपा सरकार का अब तक का सबसे छोटा मंत्रिमंडल विस्तार है, लेकिन इसके मायने बहुत बड़े हैं। तीन मंत्रियों को शपथ दिलाकर दो वर्गों-ब्राह्मण और पिछड़ों को साधने की कोशिश की गई है। राज्य में यह पहला मौका है, जब दोनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस जातिगत समीकरण पर विशेष फोकस कर रही हैं।
ब्राह्मण, राजपूत, यादव, कुशवाहा और लोधी समाज का मध्यप्रदेश की राजनीति में वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। इसका कारण इन समाजों से जुड़े लोगों की संख्या दो से सवा दो करोड़ होना है, जो मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 में से 88 सीटों पर गेमचेंजर हैं। शिवराज सरकार ने जिन एक दर्जन से अधिक समाजों के बोर्ड इसी साल गठित किए हैं, वे 105 सीटों पर दबदबा रखते हैं। सीधा मतलब ये है कि 230 में से 193 सीटों पर जाति आधारित वोटर सबसे बड़ा फैक्टर है।
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि सरकार 2018 की गलती को दोहराना नहीं चाहती। इस बार किसी भी वर्ग को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती, इसलिए मुख्यमंत्री हर जाति और वर्ग को साधने का प्रयास कर रहे हैं। गत शनिवार को हुआ मंत्रिमंडल विस्तार और पिछले दिनों आई 39 प्रत्याशियों की पहली सूची इसी रणनीति की बानगी है, जिसमें बीजेपी आदिवासी, अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग को साधने की कोशिश कर रही है। वर्ष 2018 के चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में कांग्रेस डेढ़ दर्जन समाजों को साधने में सफल हो गई थी। यही वजह है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में कारगर साबित हुए छोटी जातियों को साधने के फॉर्मूले पर मध्यप्रदेश में भी काम कर रही है।
यादव समाज का अहम रोल
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