सिविल मामलों में भी है कानून में जेल भेजने का प्रावधान
Rising Indore|21 February 2024
आम व्यक्ति को केवल इतनी जानकारी रहती है कि आपराधिक मामलों में यदि अपराध सिद्ध होता है अथवा पुलिस द्वारा गंभीर अपराधों में गिरफ्तार किया जाता है तो व्यक्ति को जेल होती है लेकिन कानून में सिविल जेल भेजने का भी प्रावधान है जो कि सिविल मामलों में ही लागू होता है।
संजय मेहरा
सिविल मामलों में भी है कानून में जेल भेजने का प्रावधान

सिविल प्रकरणों में गिरफ्तारी और हिरासत का उद्देश्य डिक्री धारक को राहत प्रदान करना है और देनदार को सिविल जेल भेजना है यदि वह ऐसा करने के लिए वित्तीय साधन होने के बावजूद डिक्री राशि का भुगतान करने में विफल रहता है। हालांकि, यह उन ईमानदार देनदारों की रक्षा करता है जिनकी भुगतान करने में विफलता उचित कारण के कारण होती है। समान न्याय सुनिश्चित करने के लिए, अदालत को देनदारों को सुनवाई का अधिकार देना चाहिए। इसका उद्देश्य डिक्रीधारक को उसके पक्ष में मुकदमे का निर्णय के बाद एक बचाव का अवसर देना है। यदि निर्णय देनदार उसके विरुद्ध जारी डिक्री का पालन करने में विफल रहता है, तो ऐसा उपाय गिरफ्तारी और कारावास के रूप में लिया जा सकता है।

यह नियम उस व्यक्ति पर लागू होता है जो संहिताप्रवर्तित डिक्री का लक्ष्य है। यदि किसी व्यक्ति के पक्ष में निर्णय जारी किया जाता है, तो उस व्यक्ति को डिक्री का पालन कराने के लिए अदालत में जाना होगा। इसके बाद अदालत संहिता के प्रावधानों के आधार पर देनदार की गिरफ्तारी और कारावास का आदेश देगी।

गरीबी कोई अपराध नहीं, जिसके पास भुगतान करने का कोई स्रोत नहीं, उसके खिलाफ धन डिक्री का हवाला देते हुए उसे जेल नहीं भेजा जा सकताः हाइकोर्ट

मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किसी देनदार के खिलाफ केवल धन डिक्री के आधार पर उसे सिविल जेल में नहीं भेजा जा सकता, यदि उसके पास कोई इनकम का स्रोत नहीं है।

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि गरीबी के कारण डिक्रीटल राशि का भुगतान करने में असमर्थता कोई अपराध नहीं है।

माननीय सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त निर्णय के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि केवल इसलिए कि प्रतिवादी के पक्ष में धन डिक्री है। याचिकाकर्ता के पास डिक्रीटल राशि का भुगतान करने के लिए कोई संपत्ति या स्रोत नहीं होने पर उसे सिविल जेल नहीं भेजा जा सकता, क्योंकि गरीबी कोई अपराध नहीं है।

अदालत ने अपनी टिप्पणियों के समर्थन में जॉली जॉर्ज वर्गीस और अन्य बनाम बैंक ऑफ कोचीन (1980) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अंश दोहराया।

जॉली वर्गीस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

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