इंदौर का बीआरटीएस कॉरिडोर जो कि पायलट प्रोजेक्ट के रूप में बना था वह एक दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद अब तक पूरा नहीं बनाया गया। ऐसे में इसे तोड़ने का फैसला हो गया। इस एक फैसले ने कांग्रेस और भाजपा को एक जाजम पर ला दिया। दोनों ही दल जनता की आवश्यकता और अपेक्षा को नजरअंदाज करते हुए राज्य सरकार के इस फैसले के समर्थन में खड़े हुए हैं। इस समय पर कोई भी यह बात करने के लिए तैयार नहीं है कि इस कॉरिडोर को तोड़ने की नौबत क्यों आ रही है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 21 नवंबर को ऐलान किया कि इंदौर के बीआरटीएस को लेकर निर्णय ले लिया है। इससे लोगों को परेशानी हो रही है, इसे हटाया जाएगा। तब से यह चर्चाओं में है। एक तरफ जहां भाजपा-कांग्रेस के नेता एकमत होकर इसे तोड़ने के फैसले पर समर्थन दे रहे हैं तो दूसरी ओर स्टूडेंट्स और यात्री इसके विरोध में हैं।
यात्रियों का कहना है कि सफर में अभी 15 से 20 मिनट लग रहा है, वह आधे घंटे तक पहुंच जाएगा। जानकार भी इसके खिलाफ है। कहा कि बीआरटीएस प्रोजेक्ट को अगर प्रशासन समय-समय पर रूचि लेकर विस्तार करता तो तोड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि आज भी इंदौर का आरटीएस सफल प्रोजेक्ट की सूची में दूसरे नंबर पर है।
पहले जानिए कैसे बना इंदौर का BRTS
देश में पटाया सिटी के बीआरटीएस मॉडल को लागू किया गया है। सबसे पहले अहमदाबाद में बीआरटीएस बनवाया गया था। इंदौर में बीआरटीएस की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि पेट्रोल-डीजल महंगा हो रहा था। ऐसे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देकर निजी वाहनों की संख्या कम करना था। पॉल्यूशन लेवल को कम करना था। ऐसे में तत्कालीन कलेक्टर विवेक अग्रवाल ने इस पर काम शुरू किया।
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