खून के आंसू
Panchjanya|August 21, 2022
विभाजन काल की परिस्थिति, साम्राज्यवादी शक्तियों के हित और राजनीतिक हसरतों की कहानी एक तरफ.. मगर उन लोगों से बात करना जिन पर यह आफत गुजरी, दिल दहलाने वाला है। झुर्रियों से अटे चेहरे, धुंधलाती आखें और उस घटनाक्रम को याद कर संघ जाने वाले गले... बुजुर्गों का अचानक फफककर रो पड़ना दबाए गए इतिहास का बांध टूट जाने जैसा है।
अरुण कुमार सिंह, अश्वनी मिश्र, दिनेश मानसेरा, राजेश प्रभु सालगांवकर और राज चावला
खून के आंसू

यह हिंदू नरसंहार का वह भीषण मामला है जिसकी दुनिया में कभी चर्चा तक नहीं होती। पाञ्चजन्य ने इसी पीड़ा को समाज के सामने लाने की ठानी है। हमारे संवाददाता दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों, गांवों में महीनों से भटक रहे हैं, गलियों की खाक छान रहे हैं, तब जाकर उन लोगों तक पहुंच पा रहे हैं, जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत आए। बचपन में बंटवारे को अपनी आंखों से देखने वालों के बयान थर्राहट से भर देने वाले हैं। इनकी आपबीती किसी को भी रुला देती है। आज ये सभी 75-100 वर्ष के हैं, लेकिन इतने दिन बाद भी उनके मन में अपनी मिट्टी छोड़ने की कसक है। मुस्लिम गुंडागर्दी के सामने बेबस रह जाने की फांस है। अपनी मां,बहन बेटियों के साथ बलात्कारों को देखने, उनके कुंओं में छलांगें लगाने या जिहादियों द्वारा झपट लिए जाने की पहाड़ जैसी पीडा है।

ये दर्दनाक कहानियां लंबी और त्रासद हैं, जिन्हें हमने अपने यूट्यूब चैनल @panchjanya पर अपलोड किया है। इस विशेषांक में ऐसे ही लोगों के दर्द और संघर्ष की कहानियों को बहुत संक्षेप में उड़ेला गया है। यदि आपके आसपास भी विभाजन पीड़ित लोग हों, तो हमें उनका वीडियो बनाकर vkv.panchjanya@gmail.com पर भेज सकते हैं।

इस अंक के लिए अरुण कुमार सिंह, अश्वनी मिश्र, दिनेश मानसेरा, राजेश प्रभु सालगांवकर और राज चावला ने भुक्तभोगियों से बातचीत की, तो शशिमोहन रावत, मंगल सिंह नेगी, जनार्दन सिन्हा और राजपाल रावत ने कंपोजिंग और साज-सज्जा में सहयोग दिया। शरतचंद्र बारीक वीडियोग्राफी में मदद कर रहे हैं।

पुरुषोत्तम लाल मेहता / सौवाल, झेलम, पाकिस्तान

लाशों के बीच छिपकर बचाई जान

Denne historien er fra August 21, 2022-utgaven av Panchjanya.

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