हिंदुत्व और अंत्योदय-बदलाव के वाहक
Panchjanya|September 25, 2022
हिंदुत्व में जिस तरह मानव में एकात्मता और समानता की बात कही गई है, उसमें बेमानी भेदों के लिए कोई जगह नहीं है। पंक्ति का आखिरी व्यक्ति पंक्ति में सबसे आगे खड़े व्यक्ति के समान महत्व रखता है
विनय सहस्रबुद्धे
हिंदुत्व और अंत्योदय-बदलाव के वाहक

अगर हम इस पर विचार करें कि वैश्विक जगत में एक हिंदू होने के क्या मायने हैं तो आज के संदर्भ में यह आसान भी है और मुश्किल भी है। एक तरफ दुनिया में हिंदू संस्कृति और जीवन पद्धति के बारे में दिलचस्पी बढ़ रही है, दूसरी ओर भारत में प्रगतिशीलता के नाम पर हर उस चीज को हिकारत से देखने का चलन दिखता है जो हिंदू है। दुर्भाग्य से गौरवशाली हिंदुओं में से अधिकतर के मामले में, हिंदू और उस तरह से हिंदूपन को परिभाषित करने संबंधी सवालों के जवाब की तलाश कम से कम जनप्रियता के स्तर पर ज्यादा दूर नहीं गई है। इसलिए कहा जा सकता है कि जब तक कोई व्यक्ति हिंदू संस्कृति पहचान के नाम पर बात करेगा तो उसे सामाजिक सुधार के पक्ष में या पिछड़ों के उत्थान के लिए खड़ा होने वाला या समाज सुधारक तो नहीं ही माना जाएगा। इस पृष्ठभूमि में पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन व अंत्योदय का विचार बराबरी, लैंगिक व सामाजिक न्याय के आज के विचारों के अनुरूप, हिंदुत्व को समझने, व्याख्यायित करने व उसे स्वीकार करने में मदद करता है।

आध्यात्मिक लोकतंत्र

हिंदू होने का क्या अर्थ है, यह तार्किक रूप से एक हिंदू होने के विचार से जुड़े गुणों पर निर्भर करता है। किसी के हिंदूपन को बनाने वाले आयामों, यानी हिंदुत्व को पहचानना हमें शुरू में किए गए सवाल के जवाब के नजदीक ले जाता है। शाब्दिक दृष्टि से हिंदुत्व या हिंदूपन या इसे हिंदू होने के तौर पर भी बताया जा सकता है। आराध्य देवी-देवताओं की बहुत बड़ी संख्या होने की वजह से हिंदू धर्म में सबको एक खांचे में बैठाना संभव नहीं है। इसी वजह से बनी है हिंदू विश्वदृष्टि। ईसाइयत और इस्लाम के उलट, हिंदुत्व मानता है कि हर रास्ता व्यक्ति को एक ही सत्य, उस एक ईश्वर तक ले जाता है। विद्वान इसे भिन्न-भिन्न तरीके से व्यक्त करते हैं। इस सिद्धांत में दृढ़ आस्था जिसे 'एकम् सद् में विप्राः बहुधाः वदन्ति में व्यक्त किया गया है, हिंदू धार्मिक विचार का मूल है। मोक्ष प्राप्ति के इन अनेक रास्तों में मौलिक आस्था के कारण हिंदू धर्म में कन्वर्जन का कोई स्थान नहीं है, यह स्थानीय संप्रदायों, जैसे-जैन या बौद्ध मतों में भी दिखती है।

अंत्योदयः सामाजिक न्याय, लैंगिक समता की हिंदू पद्धति

Denne historien er fra September 25, 2022-utgaven av Panchjanya.

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