अगर हम इस पर विचार करें कि वैश्विक जगत में एक हिंदू होने के क्या मायने हैं तो आज के संदर्भ में यह आसान भी है और मुश्किल भी है। एक तरफ दुनिया में हिंदू संस्कृति और जीवन पद्धति के बारे में दिलचस्पी बढ़ रही है, दूसरी ओर भारत में प्रगतिशीलता के नाम पर हर उस चीज को हिकारत से देखने का चलन दिखता है जो हिंदू है। दुर्भाग्य से गौरवशाली हिंदुओं में से अधिकतर के मामले में, हिंदू और उस तरह से हिंदूपन को परिभाषित करने संबंधी सवालों के जवाब की तलाश कम से कम जनप्रियता के स्तर पर ज्यादा दूर नहीं गई है। इसलिए कहा जा सकता है कि जब तक कोई व्यक्ति हिंदू संस्कृति पहचान के नाम पर बात करेगा तो उसे सामाजिक सुधार के पक्ष में या पिछड़ों के उत्थान के लिए खड़ा होने वाला या समाज सुधारक तो नहीं ही माना जाएगा। इस पृष्ठभूमि में पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन व अंत्योदय का विचार बराबरी, लैंगिक व सामाजिक न्याय के आज के विचारों के अनुरूप, हिंदुत्व को समझने, व्याख्यायित करने व उसे स्वीकार करने में मदद करता है।
आध्यात्मिक लोकतंत्र
हिंदू होने का क्या अर्थ है, यह तार्किक रूप से एक हिंदू होने के विचार से जुड़े गुणों पर निर्भर करता है। किसी के हिंदूपन को बनाने वाले आयामों, यानी हिंदुत्व को पहचानना हमें शुरू में किए गए सवाल के जवाब के नजदीक ले जाता है। शाब्दिक दृष्टि से हिंदुत्व या हिंदूपन या इसे हिंदू होने के तौर पर भी बताया जा सकता है। आराध्य देवी-देवताओं की बहुत बड़ी संख्या होने की वजह से हिंदू धर्म में सबको एक खांचे में बैठाना संभव नहीं है। इसी वजह से बनी है हिंदू विश्वदृष्टि। ईसाइयत और इस्लाम के उलट, हिंदुत्व मानता है कि हर रास्ता व्यक्ति को एक ही सत्य, उस एक ईश्वर तक ले जाता है। विद्वान इसे भिन्न-भिन्न तरीके से व्यक्त करते हैं। इस सिद्धांत में दृढ़ आस्था जिसे 'एकम् सद् में विप्राः बहुधाः वदन्ति में व्यक्त किया गया है, हिंदू धार्मिक विचार का मूल है। मोक्ष प्राप्ति के इन अनेक रास्तों में मौलिक आस्था के कारण हिंदू धर्म में कन्वर्जन का कोई स्थान नहीं है, यह स्थानीय संप्रदायों, जैसे-जैन या बौद्ध मतों में भी दिखती है।
अंत्योदयः सामाजिक न्याय, लैंगिक समता की हिंदू पद्धति
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
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नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
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जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
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नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई