दिल्ली का शिक्षा - मॉडल न पैसा न पद
Panchjanya|October 02, 2022
अपने शिक्षा मॉडल का ढिढोरा पीटने वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार से 12 कॉलेज नहीं संभल रहे। इन कॉलेजों में न तो नए शिक्षकों की भर्ती हो रही है, न ही अस्थायी शिक्षकों को स्थायी किया जा रहा है। पदोन्नति तो दूर, शिक्षकों को समय पर वेतन तक नहीं मिल रहा
आशीष कुमार अंशु
दिल्ली का शिक्षा - मॉडल न पैसा न पद

देश - दुनिया में अपने शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा पीटने वाली दिल्ली सरकार से 12 कॉलेज नहीं संभल रहे। दिल्ली सरकार इन कॉलेजों के प्राध्यापकों और कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही है। जुलाई में दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज के सहायक प्राध्यापकों के वेतन में 30 हजार से 50 हजार रुपये की कटौती कर दी गई। वेतन में कटौती केवल दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज तक सीमित नहीं है, बल्कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले और दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी 12 कॉलेजों की यही स्थिति है। इन कॉलेजों के प्राध्यापकों को लंबे समय से पदोन्नति भी नहीं दी गई है।

इसे लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) और दूसरे शिक्षक संगठन अलग-अलग मंचों और उपराज्यपाल के समक्ष इस मुद्दे को उठाते आ रहे हैं। भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा भी शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अरविंद केजरीवाल को ज्ञापन देने गए थे। लेकिन जनप्रतिनिधियों के अधिकार और सम्मान की बात करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने सांसद से मिलना तक जरूरी नहीं समझा। अकादमिक परिषद के सदस्य और शहीद भगत सिंह कॉलेज में प्राध्यापक डॉ. अरुण अत्री कहते हैं, "संवाद होना चाहिए। जब तक केजरीवाल शिक्षकों की समस्या नहीं सुनेंगे, इसे दूर कैसे करेंगे? शिक्षकों का अपना परिवार है, बच्चों की स्कूल फीस है, परिवार में लोग बीमार पड़ते हैं। ईएमआई का बोझ है। यदि समय पर पूरा वेतन नहीं मिलेगा, तो शिक्षकों का परिवार कैसे चलेगा?" वे बताते हैं कि दिल्ली सरकार के एक कॉलेज की महिला प्राध्यापक ने मासिक किस्त पर एक एसयूवी खरीदी थी। लेकिन केजरीवाल सरकार की वेतन रोको नीति की वजह से ईएमआई चुकाना मुश्किल हो गया। नतीजा, उन्हें अपनी गाड़ी बेचनी पड़ी।

Denne historien er fra October 02, 2022-utgaven av Panchjanya.

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