परख का समय
Panchjanya|December 04, 2022
संविधान देश की व्यवस्था की नींव है। इसकी प्रस्तावना में भारत के जीवन मूल्य, भारत की हजारों वर्षों की सांस्कृतिक परंपरा समाहित है। संविधान बनने और लागू होने के बाद से ही इस देश ने देखा है कि इस नींव के साथ कौन खड़ा है और कौन हैं नींव खोदने वाले
रामबहादुर राय
परख का समय

संविधान की प्रस्तावना, अधिकार एवं कर्तव्य और नीति-निर्देशक तत्व, ये तीनों मिलकर संविधान की आत्मा बनते हैं। संविधान का हृदयस्थल बनता है, जिससे कि पूरे संविधान के शरीर में रक्त का संचार होता है और संविधान संचालित होता है।

संविधान की जो प्रस्तावना है, उसमें तीन शब्द दिए गए- उद्देशिका, प्रस्तावना, और अंग्रेजी में प्रिएंबल। भारत का जो जीवन मूल्य है, भारत की हजारों साल की जो सांस्कृतिक परंपरा है, दुनिया को देखने का हमारा जो दृष्टिकोण है, वह इस संविधान की प्रस्तावना में आ गया है। उस प्रस्तावना को दो चीजों में परिभाषित किया गया है। एक नीति-निर्देशक तत्व में और दूसरा अधिकार एवं कर्तव्य में। अधिकार वाली जो बात है, वह दरअसल कांग्रेस का जो वादा था, उसका परिपालन था लेकिन उस वादे पर कांग्रेस टिकी नहीं रही। कांग्रेस ने पहले संशोधन से ही अधिकारों को बदल दिया। 

राष्ट्र की आकांक्षा के प्राणतत्व

संविधान में प्रस्तावना सूत्र रूप में है और कह सकते हैं कि यह जटिल नहीं, बल्कि सरल है। प्रस्तावना का हर एक शब्द मंत्र जैसा है। इसको यदि हम ध्यान से समझेंगे तो इसका अर्थ प्रकट होगा। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के एक दार्शनिक आकाश सिंह राठौर ने लिखा है, 'मूल उद्देशिका में 44 शब्द हैं, अगर उसके घोषणात्मक और उद्देश्यपरक अंश को इसमें शामिल न करें।' जिससे संविधान का दर्शन प्रस्फुटित होता है, उद्देशिका में वे शब्द सिर्फ छह हैं- न्याय, स्वतंत्रता, समता, गरिमा, राष्ट्र और बंधुता। ये शब्द मात्र शब्द नहीं हैं। हर शब्द ने स्वाधीनता संग्राम में अपना एक अर्थ ग्रहण कर लिया। उसका एक शब्दचित्र बना। वह राष्ट्र की आकांक्षा में प्राण तत्व के रूप में स्थित है। संविधान निर्माताओं ने उसे ही इन शब्दों से उद्देशिका को सूत्र रूप दिया। उन सूत्रों से ही संविधान रूपी वृक्ष से मौलिक अधिकारों की एक टहनी निकली।

Denne historien er fra December 04, 2022-utgaven av Panchjanya.

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