समाज का हित ही लेखनी का ध्येय
Panchjanya|December 25, 2022
अटल जी ‘राष्ट्रधर्म’ और ‘पाञ्चजन्य' के प्रथम संपादक थे। पत्रकारिता छोड़ कर राजनीति में पूरी तरह रम जाने और राजनीतिक ऊंचाइयां चढ़ने के बाद भी अटल जी की न सिर्फ दृष्टि और लेखनी की धार पैनी बनी रही बल्कि पत्रकारिता के तमाम पहलुओं पर वह चिंतन भी करते थे
समाज का हित ही लेखनी का ध्येय

दिल्ली में 29 और 30 मार्च, 1994 को प्रथम पाञ्चजन्य लेखक एवं संवाददाता सम्मेलन का आयोजन हुआ था। इसके उद्घाटन सत्र को पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक अटल बिहारी वाजपेयी ने संबोधित किया था। यह संबोधन अटल जी की पत्रकारिता के विभिन्न आयामों के प्रति पैनी दृष्टि को दर्शाता है।

अटल जी कहते हैं कि पत्रकारिता के लिए बुनियादी बात यह है कि ध्येय के प्रति समर्पण हो, विचार के प्रति समर्पण हो। उन्होंने कहा कि विचार में शक्ति है और विचार जब छप जाता है तो एक हथियार बन जाता है। हालांकि यदि विचार बिक रहा है, विचार बेचा जा रहा है और उसके मूल में राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना नहीं है तो फिर विचारों का विक्रय हमें कहां ले जाएगा, इसकी कल्पना से हमें चिंता होती है।

अखबारों के स्वामित्व पर अटल जी ने कहा कि यद्यपि इस समय बाजार आधारित अर्थव्यवस्था चल रही है लेकिन फिर भी अखबारों के स्वामित्व का कोई न कोई तरीका होना चाहिए, ढंग होना चाहिए। विचारों की स्वाधीनता, अभिव्यक्ति की आजादी, उसका उपयोग समाज के हित में होगा या नहीं होगा या वह निहित स्वार्थ के हाथों का खिलौना बन कर रह जाएगी, यह देखना चाहिए। समाचारपत्र मालखाने से निकलने वाला माल नहीं है।

मई, 1996 में पाञ्चजन्य को दिए गए एक साक्षात्कार में आज के संपादकों को संदेश देने के लिए कहने पर अटल जी ने कहा कि मैं उपदेश देने की स्थिति में नहीं हूं। इतना ही कहूंगा कि संपादक को समाज के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए और अपने प्रति सच्चा होना चाहिए। आत्मा के विरुद्ध काम नहीं करना चाहिए। लेकिन यह जरूरी है कि पहले आत्मा को जीवित रखा जाए। 

Denne historien er fra December 25, 2022-utgaven av Panchjanya.

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