तवांग से जुड़े हैं राजनीतिक तार
Panchjanya|December 25, 2022
तवांग में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिश चीन की सैन्य रणनीति के बजाय राजनीतिक रणनीति ज्यादा प्रतीत होती है। इससे पहले गलवान में और उससे पूर्व डोकलाम में भी भारत-चीन टकराव के साथ राजनीतिक पहलू जुड़ा दिखता है
आर. एस. एन. सिंह
तवांग से जुड़े हैं राजनीतिक तार

अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में चीनी सैनिकों ने एक बार फिर घुसपैठ की कोशिश की, जिसका भारतीय सैनिकों ने उन्हें तगड़ा जवाब दिया। जवाब ऐसा कि चीनी सैनिक इसे भूल नहीं पाएंगे और अपने कमांडर से कहते रहेंगे कि यह नया भारत है। यह घर में घुस कर भी मारता है और इनके यहां घुसपैठ करो तो भी मारता है। प्रश्न यह है कि आखिर चीन लगातार इस तरीके की हरकतें क्यों करने लगा?

चीन की ओर से ये गतिविधियां पिछले पांच-छह साल में ज्यादा हुई हैं, खासकर 2017 के बाद से। इन घटनाओं में एक समान बात दिखेगी। पहला, 2017 में जब डोकलाम संकट हुआ था तो उसी दौरान राहुल गांधी छिपते-छिपाते चीनी दूतावास जा रहे थे। इसके बाद 2020 में देखें, यह बात उजागर हुई कि 2008 में कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे। तब उस समय गलवान की घटना हुई। और, अब जब यह संसद सत्र शुरू हुआ है तो तवांग के इलाके में समान घटना हुई। इस तीनों घटनाओं के साथ कोई न कोई राजनीतिक पहलू जुड़ा है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का एक अंग है पीएलए - पीपुल्स लिबरेशन आर्मी। वह संपूर्ण रूप से एक राजनीतिक मशीनरी है। यह चीन की सेना का एक राजनीतिक यंत्र है। इस संगठन का अध्ययन करेंगे तो आप देखेंगे कि बटालियन के स्तर तक एक राजनीतिक कमिसार (महासचिव) होता है जिसका यही काम होता है कि किस तरीके से लोगों को कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित किया जाए। इसका दूसरा काम उस पर वैचारिक नियंत्रण रखना है।तीसरे, वे पूरी व्यवस्था में भिन्न सोच वाले ओहदेदारों के बारे में रिपोर्टिंग भी करते हैं। वर्ष 1993 में भारत-चीन में सीमा पर गश्त के दौरान एक-दूसरे पर गोली न चलाने का समझौता हुआ था। जब इस बात का इत्मिनान हो कि गोली नहीं चलेगी तो उसका फायदा हमारे देश के भीतर बैठे चीनपरस्त लोग उठाते हैं और चीन के साथ सांठगांठ करके ये सारा खेल बड़ी चतुराई से नियंत्रित करते हैं।

Denne historien er fra December 25, 2022-utgaven av Panchjanya.

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