समाज और स्वतंत्रता की जगाई अलख
Panchjanya|February 19, 2023
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने जहां एक ओर वेदों का प्रचार किया, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता की लड़ाई में भी भाग लिया। यही कारण है कि उनके अनेक शिष्यों ने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया
प्रो. (डॉ.) व्यासनन्दन शास्त्री 'वैदिक'
समाज और स्वतंत्रता की जगाई अलख

न्नीसवीं शताब्दी भारत के इतिहास का घोरतम अंधकारमय युग था । इस गहन अंधकार में लोग एक ऐसी दिव्य आत्मा की कामना कर रहे थे, जिसमें गौतम, कपिल, कणाद, कुमारिल भट्ट का पांडित्य हो, जिसमें हनुमान और भीष्म पितामह का ब्रह्मचर्य हो, जो शंकराचार्य जैसा योगी हो। यही नहीं, उसमें भीम जैसा बल, महात्मा बुद्ध का अनुपम त्याग और वैराग्य, श्रीराम का आदर्श, श्रीकृष्ण की नीति, शिवाजी की निमित्ता, महाराणा प्रताप जैसा शौर्य हो। भगवान ने लोगों की कामना पूरी की और शनिवार, फाल्गुन दशमी, विक्रमी संवत् 1881 तद्नुसार 12 फरवरी, 1824 ई. को गुजरात के टंकारा में एक बालक का जन्म हुआ। वही बालक बाद में देश-दुनिया में महर्षि दयानन्द सरस्वती के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

धीर-वीर, गंभीर और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी युगद्रष्टा महर्षि दयानन्द की उन्नीसवीं सदी के महापुरुषों में अलग पहचान है। के विशेषकर ब्रह्मा से लेकर जैमिनी मुनि के पश्चात् वेदों पर अपनी गहनतम गहराई के लिए और उनकी ऋतम्भरा बुद्धि मानवमात्र के हितचिन्तन के लिए विशेष ध्यातव्य है। महर्षि दयानन्द का सर्वहितकारी चिन्तन और उनकी दिव्य दृष्टि पूर्णतः सत्य धर्म पर आधारित रही । वैदिक सभ्यता और संस्कृति के रक्षण, पोषण और प्रसारण में उनका संपूर्ण जीवन समर्पित रहा।

Denne historien er fra February 19, 2023-utgaven av Panchjanya.

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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
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रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे

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अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है

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होली का रंग तो बनारस में जमता था
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होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश

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March 12, 2023
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
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भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है

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नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।

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