“भारतीय संस्कारों ने दिलाया दुनिया में भारतवंशियों को सम्मान"
Panchjanya|February 26, 2023
फिजी के उप प्रधानमंत्री प्रो. बिमान प्रसाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की प्रगति के बारे में सुनते हैं तो उनकी आंखों की कोर गीली हो जाती हैं। कह उठते हैं- 'एक राम मंदिर फिजी में भी बनना चाहिए'। उनकी बातों में अपने पुरखों की माटी के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का भाव है। हिन्दी के प्रति उनका स्नेह देखते ही बनता है। वे आगे बढ़ते भारत की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि आज दुनिया हर क्षेत्र में भारत की धाक मानती है। भारत के बढ़ते कदम उनके मन को सुकून देते हैं। अपनी भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली स्थित फिजी उच्चायोग में उप प्रधानमंत्री प्रो. बिमान प्रसाद ने पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर से फिजी-भारत संबंधों के विभिन्न पक्षों पर खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
हितेश शंकर
“भारतीय संस्कारों ने दिलाया दुनिया में भारतवंशियों को सम्मान"

■ फिजी में एक छोटे भारत के दर्शन होते हैं । साझा सांस्कृतिक विरासत है। पूर्वज साझे हैं। इस साझेपन को आप कैसे देखते हैं?

सबसे पहले मैं पाञ्चजन्य के पाठकों को फिजी की ओर से स्नेह और धन्यवाद व्यक्त करता हूं। भारत आकर बहुत अच्छा लगता है। अब बात फिजी में छोटे भारत के दर्शन की तो निश्चित रूप से फिजी-भारत का एक इतिहास है। सबसे पहले भारत से 1879 में अंग्रेजी राज के अंतर्गत भारतीयों को यहां से अन्य देशों में ले जाया गया था। मॉरीशस, त्रिनिदाद, घाना, लेकिन फिजी इसमें अंतिम देश था तो उसी समय से भारत और फिजी का संबंध जुड़ा हुआ है, जो आज तक कायम है। बात यह है कि जब हमारे पूर्वज यहां (भारत) से गए थे तो अपनी संस्कृति, सभ्यता, संस्कार साथ लेकर गए थे । और जब वे फिजी में पहुंचे तो गिरमिट प्रथा थी, उसके तहत उन पर बहुत अत्याचार हुए। इसमें अकेले हिन्दू ही नहीं थे, अन्य मत-पंथों के लोग भी थे। सभी जहाजी भाई बनकर गए थे। और सभी ने फिजी में धर्म-संस्कृति को बरकरार रखा। हमारे पूर्वजों ने बहुत मेहनत की। लगन से काम किया। आज भी हमारी भाषा में हिन्दी प्रमुख है। हमारी संस्कृति और सभ्यता जो है वह धर्म है। एक और बात, हमारे पूर्वज यहां से गए जरूर लेकिन ऐसा कभी नहीं रहा कि कोई संपर्क टूटा हो भारत से। यहां से लोग आते-जाते रहे हैं। भारत के लोग जानना चाहते थे कि वहां गिरमिटिया सिस्टम कैसा है। खबरों के जरिए वे जानते थे कि इसके तहत अत्याचार होता है। तो उसे बंद कराने के लिए प्रयास भी करते रहते थे। इसी कारण भाषा, धर्म, संस्कृति और सभ्यता का आदान-प्रदान होता रहा है। और इसलिए फिजी में आज हमारी सभ्यता-संस्कृति, विशेषकर हिन्दी भाषा को संरक्षित करके रखा गया है और लगातार उसका प्रचार-प्रसार हो रहा है। कभी-कभी जब लोग भारत से फिजी आते हैं तो उन्हें यह जानकर आश्चर्य होता है कि डेढ़ सौ सालों के बाद भी वही सभ्यता-संस्कृति जीवंत है। आज भी फिजी में जितने भारतीय बुजुर्ग हैं, उनका भारत से बहुत लगाव है। क्योंकि जब भी उन्हें जीवन में मौका मिलता है तो वे भारत के धार्मिक स्थलों - मथुरा, काशी, अयोध्या, ऋषिकेश एवं पूर्वजों के अन्य स्थानों पर जाना चाहते हैं। 

Denne historien er fra February 26, 2023-utgaven av Panchjanya.

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