कृत्रिम बुद्धिमत्ता करेगी हिंदी का कायाकल्प
Panchjanya|February 26, 2023
कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि अगले एकाध दशक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बदौलत हमारी दुनिया का कायाकल्प होने वाला है
बालेन्दु शर्मा दाधीच
कृत्रिम बुद्धिमत्ता करेगी हिंदी का कायाकल्प

स बार के विश्व हिंदी सम्मेलन के मुख्य विषय (थीम) के बारे में जानकर कुछ को कौतूहल हुआ और कुछ को आश्चर्य। थीम है- ‘हिंदीः पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक।' बहुतों को इसलिए हैरत हुई कि हिंदी भाषा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच क्या संबंध हो सकता है, यह उनके लिए एक पहेली के समान है। कुछ को इसलिए आश्चर्य हुआ कि अब तक विश्व हिंदी सम्मेलनों की चर्चाएं या तो साहित्य पर केंद्रित रहती थीं या भाषा पर कुछ सत्र मनोरंजन और मीडिया पर भी केंद्रित होते रहे हैं। लेकिन इस बार हम प्रौद्योगिकी, विज्ञान और बाजार की बात कर रहे हैं। यह हिंदी में विमर्श को एक नई दिशा देने वाला घटनाक्रम है और संभवतः विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके मंत्रालय का यही उद्देश्य भी है। 

आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि अगले एकाध दशक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बदौलत हमारी दुनिया का कायाकल्प होने वाला है। हिंदी सहित हमारी भाषाएं भी इस बदलाव से अछूती नहीं रहने वालीं और न ही उन्हें इससे अप्रभावित रहना चाहिए। जो भाषाएं बदलते युग के साथ तालमेल बिठाकर नहीं चल पातीं, उनके स्थायी अस्तित्व की गारंटी नहीं ली जा सकती। वैसे ही, जैसे अपने दौर के विकास, बदलाव, नवाचार आदि से अछूते रह जाने वाले समाज न सिर्फ प्रगति की दौड़ में पिछड़ जाते हैं बल्कि धीरे-धीरे अपनी प्रासंगिकता खो बैठते हैं। अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देशों के उदाहरण आपके सामने हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, बाजार और बदलाव एक वास्तविकता है। उनका प्रतिरोध करने में कोई लाभ नहीं। हां, उनके साथ आने में हम सबका लाभ है, हमारी भाषाओं का भी।

Denne historien er fra February 26, 2023-utgaven av Panchjanya.

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