इस्लाम में एक नया चलन शुरू हुआ है- इस्लाम को नए सिरे से पेश करने का, इस्लाम के बारे में नए तर्क और नए तथ्य पेश करने का। एक स्पष्ट बेचैनी है, लेकिन किस कारण है? इसी हड़बड़ी में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के 34वें अधिवेशन में अरशद मदनी ने भारत को इस्लाम का जन्म स्थान और इस्लाम को भारत का सबसे पुराना मजहब बता दिया। प्रश्न है कि उलेमा इस्लाम के बारे में नई-नई बातें करने के लिए हड़बड़ी में क्यों हैं? क्या यह दबाव इस्लामी बिरादरी के भीतर चल रही हलचल के कारण है?
लगभग एक दशक पहले इस्लाम छोड़ चुके, सुन्नी मसलक से संबंधित रहे असलम कहते हैं, "इस्लाम वो मजहब है, जिसमें मजहब पर सवाल उठाने की आजादी नहीं है। इसके अलावा इस मजहब में आप बाहर से किसी को शामिल कर सकते हैं, लेकिन इस मजहब को छोड़ने की अनुमति किसी को नहीं है। मजहब छोड़ने पर सख्त सजा का प्रावधान है।" आठ मुस्लिम देशों में तो फांसी की सजा का प्रावधान है। कई अन्य देशों में कैद, जुर्माना और अन्य सख्त सजाएं हैं। जहां कानूनी सजाएं नहीं हैं, वहां जुनूनी मुस्लिम समूह खुद सजा देने को आतुर रहते हैं। ऐसे में अब मजहब छोड़ने का चलन तेजी से बढ़ा है। मुस्लिम युवा सवाल उठा रहे हैं। मारे जाने के खौफ से वे सामने नहीं आते, लेकिन इंटरनेट आ जाने के बाद कई खुल कर सामने आ रहे हैं, अपनी बात रख रहे हैं और मोमिनों, मौलानाओं को आमने-सामने बहस की चुनौती दे रहे हैं। अपने यूट्यूब चैनल खोल कर अन्य मुस्लिम युवाओं को इस्लाम की कमियों के बारे में बता रहे हैं और उनके सवालों के जवाब दे रहे हैं। क्या यही बड़ी वजह थी भारत को इस्लाम का जन्म स्थान और इस्लाम को भारत का सबसे पुराना मजहब बताने की? अगर उलेमा इस तरह का दबाव महसूस कर रहे हैं, तो उसकी वजहें तो नजर आती हैं।
14 भाषाओं में एक्स मुस्लिम के चैनल
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