ऐसे हुआ 'शून्य' का आविष्कार
Panchjanya|PANCHJANYA 05 March 2023
'आग' और 'पहिए' के विकास के बाद ‘शून्य' का एक संख्या के रूप में प्रयोग करना के बौद्धिक विकास की क्रांतिकारी खोज था
डॉ. माधव गोविंद
ऐसे हुआ 'शून्य' का आविष्कार

णित की भाषा में 'शून्य' को सबसे छोटी सकारात्मक संख्या माना जाता है। इसका अपना कोई मान नहीं होता। इसको अगर हम किसी संख्या के आगे लगाते हैं, तो यह उसका मान बढ़ा देता है, जैसे 1 के बाद शून्य लगा देने से उसका मान 10 हो जाता है, और अगर हम शून्य को किसी संख्या के पहले लगाते हैं, तो उसका मान वही रहता है। जैसे कि 01, इसको एक ही पढ़ा जाएगा। शून्य की यह विशेषता है कि इसे किसी संख्या से गुणा करें या भाग दें, तो परिणाम शून्य ही रहता है। शून्य एक अति महत्वपूर्ण अंक है। इसके बिना हम किसी भी प्रकार के द्विअंकीय यानी 'बाइनरी' संख्या को नहीं बना सकते।

भारतीय मनीषियों ने शून्य को दशमलव पद्धति में शामिल कर गणना पद्धति को अत्यधिक सरल बना दिया। इससे भिन्नों का वर्णन करने के लिए एक नया और अधिक सटीक तरीका विकसित करने में सहायता मिली। दशमलव बिंदु की सहायता से प्रारंभ में शून्य जोड़ने से उसका परिमाण कम हो जाता है, और दशमलव बिंदु के दाईं ओर अपरिमित रूप से अनेक अंक रखने से अनंत परिशुद्धि मिलती है। भारतीय गणना पद्धति ने गणित की तीन प्रमुख शाखाओं- बीजगणित, एल्गोरिदम और कैलकुलसके विकास में महती योगदान दिया, जो आगे चलकर आधुनिक कंप्यूटर की भाषा बनाने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

भारत के बाहर प्राचीन विद्वानों ने शून्य का प्रयोग एक संख्या की अनुपस्थिति का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक प्रतीक के रूप में किया । जैसा कि हम 101 य 102 में शून्य का उपयोग यह इंगित करने के लिए करते हैं कि मध्य स्थिति में 10 का कोई गुणक नहीं है। प्राचीन बेबीलोन के लोग शून्य को दर्शाने के लिए दो कोण वाले पच्चर (मध्य) का प्रयोग करते थे वहीं माया सभ्यता के लोग एक आंख के समान वर्ण का प्रयोग करते थे। चीनियों ने खुले वृत्त का प्रयोग किया था, और हिंदुओं ने शून्य को एक बिंदु के रूप में दर्शाया। भारत का शून्य अरब जगत में ‘सिफर' नाम से प्रसिद्ध हुआ, फिर लैटिन, इटैलियन, फ्रैंच आदि से होते हुए इसे अंग्रेजी में 'जीरो' कहा जाने लगा।

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