घर की इच्छा इस भौतिक युग में किसे नहीं होती? हर कोई वर्तमान की भौतिकता के हिसाब से घर का स्वप्न देखता रहता है। इनमें से कुछ अपने सपने को साकार कर लेते हैं, तो कुछ नवीन घर बनाने का जीवनभर प्रयास करते रहते हैं, लेकिन नवीन घर नहीं बना पाते हैं। वे अपने पुराने अथवा किराए के घर में ही रहने को विवश हो जाते हैं, लेकिन जन्मचक्र जातक के घर की स्थिति को भी बयान करता है। अध्ययन से पता चल जाता है कि जातक का भवन कैसा बनेगा?
जन्मपत्रिका में यदि चतुर्थ भाव में शनि स्थित हो अथवा चतुर्थेश पर शनि का प्रभाव हो, तो जातक को घर तो प्राप्त हो जाता है, लेकिन पुराना घर अथवा पिता या दादा के द्वारा बनवाया हुआ घर प्राप्त होता है। चूँकि यह घर भौतिकता के हिसाब से नहीं होता है। यह पुराना होता है।
इसी कारण जातक बार-बार प्रयास करता है, लेकिन वह नवीन घर नहीं बनवा पाता, यानि उसे आयु के 42वें वर्ष तक नवीन घर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, तब कहीं जाकर व नया घर ले पाता है अथवा नए घर में प्रवेश कर पाता है, क्योंकि शनि काफी सब्र और संघर्ष के बाद कर्म गति को सहज करता है।
1. जन्मपत्रिका में चतुर्थ भाव का स्वामी एकादश भाव में हो और एकादश भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो अथवा लाभेश, चतुर्थेश की युति हो अथवा आपस में दृष्टि सम्बन्ध हो रहा हो, तो जातक के एक से अधिक मकान होते हैं। वह वाहन का स्वामी होता है। मकान, जमीन खरीदने-बेचने से उसे विशेष लाभ भी होता है।
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
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सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
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