॥ आत्मदीपो भव ॥
Jyotish Sagar|October 2022
दीपक ज्ञान एवं प्रकाश का सदैव से प्रतीक रहा है। दीपोत्सव पूर्व वैदिक काल से भारत ही नहीं, वरन् विश्व के अधिकांश भागों में मनाया जाता रहा है।
डॉ. श्याम मनोहर व्यास
॥ आत्मदीपो भव ॥

आज से लगभग 3,000 वर्षों पूर्व विश्व की आदिम जातियाँ प्रकृति पूजक ही रही हैं। अग्नि ऊर्जा का रूप है, जिसका अधिदेवता सूर्यदेव को माना गया है। दीपोत्सव प्रकाशमय पर्व है। ज्योति अर्थात् प्रकाश की उपासना का उल्लेख भारतीय वाङ्मय वेदों में भी हुआ है। यथा;

तद्वो दिवो, दुहितो विभाति, रूप बुत उषसो यज्ञकेतुः।

वयं स्याम यशसो जनेषु तधौश्च:, धत्तां पृथिवी च देती।

अर्थात् हे दीप्ति की दुहिते! ज्योतिर्मयी हमें जीवलोक में यशस्वी बनने का वरदान दो।

दीपक सभी ज्योतियों में श्रेष्ठ एवं ज्ञान के प्रसार का प्रतीक माना गया है। भारतीय संस्कृति में दीपशिखा के प्रति गहरी आस्था प्रकट की गई है। साहित्य एवं कला में दीपक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रज्ञा का अर्थ भी ज्ञान का प्रकाश है। ‘

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय' प्रार्थना अन्धकार से प्रकाश अर्थात् अज्ञान से ज्ञानमार्ग की ओर जाने का आवाहन है। यहाँ 'तमस' का अर्थ अन्धकार है। अध्यात्म के रूप में अज्ञान है।

Denne historien er fra October 2022-utgaven av Jyotish Sagar.

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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
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[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]

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जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।

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सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
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आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥

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नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
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नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
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