यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ...
Jyotish Sagar|September 2023
वसुदेव 'विशुद्ध चित्त' और देवकी 'निष्काम बुद्धि' थीं। ये दोनों मिलते हैं, तभी तो भगवान् का जन्म होता है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ...

सुदेव मथुरा बरात लेकर आए थे मथुरापति कंस की बहिन का वरण करने के लिए। देवकी-वसुदेव के विवाह में कंस उत्साहित था, इतना कि, स्वयं राजा होते हुए भी वर-वधू का रथ चलाते हुए अपनी बहिन को विदा करने जा रहा था। स्पष्ट है, उसके मन में अपनी बहिन के लिए अथाह प्रेम और बहनोई के लिए सम्मान था। वे लोग रथ में खुशी के साथ जा ही रहे थे, तभी आकाशवाणी हुई, “कंस! तू जिस देवकी के विवाह से इतना प्रसन्न है, उसी की आठवीं सन्तान तेरी हत्या करेगी।"

कंस स्तब्ध! देवकी खामोश! वसुदेव किंकर्तव्यविमूढ़ ! एकबारगी तो समूचा मथुरा ठहरसा गया। उस सन्नाटे को तोड़ा कंस की हुंकार ने, “तो मैं इस देवकी का ही वध कर देता हूँ।"

इस पर शुद्ध सत्त्वगुण स्वरूप वसुदेव बड़े शान्त भाव से बोले, “जो आया है, वह जाएगा। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु होनी ही है। इसीलिए तो महात्मा लोग मृत्यु को टालने की नहीं, सुधारने की सलाह देते हैं। शरीर का नाश तो होगा ही। वैर न करो। वैर या सुख की वासना मृत्यु को भ्रष्ट करती है। प्रभुस्मरण करते हुए जो मरता है, उसकी मृत्यु सुधरती है। देवकी की हत्या से तो तुम अमर नहीं हो जाओगे और फिर देवकी तो तुम्हारी मृत्यु का कारण नहीं।"

यह सारगर्भित बात कंस की समझ में आ गई, बोला, "हाँ, यह तो है।"

वसुदेव ने कहा, “मैं देवकी की सभी सन्तान तुम्हें देता रहूँगा।"

कंस ने सोचा कि फिर क्यों मैं स्त्री की, वह भी बहिन की हत्या का पाप करूँ और बोला, "ठीक है, मैं देवकी की हत्या नहीं करूँगा।"

Denne historien er fra September 2023-utgaven av Jyotish Sagar.

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September 2024
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
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प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
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