क्रान्तिकारी सुशीला देवी
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|Kendra Bharati - August 2022 Issue
भारत की स्वतंत्रता एक दीर्घकालिक संघर्ष एवं असंख्य बलिदानों की परिणीति थी।
क्रान्तिकारी सुशीला देवी

इस स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने जहाँ कुछ लोग इतिहास के पन्नों में अमर हो गएए तो वही असंख्य ऐसे क्रान्तिकारी भी हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में वह जगह नहीं मिलीए जिसके वह हकदार थे। ऐसे ही एक गुमनाम महान क्रान्तिकारियों में 'सुशीला दीदी' का नाम प्रमुख है, क्योंकि आज तक शहीद-ए-आजम भगत सिंह की कुर्बानियों के किस्से गानेवाला देश उनका हर विकट परिस्थितियों में साथ देनेवाली सुशीला देवी और दुर्गा भाभी को भूल गया है। सुशीला दीदी का जन्म ५ मार्च, १८०५ को तत्कालीन पंजाब के दत्तोचूहड़ (अब पाकिस्तान में है) में हुआ था एवं उनकी शिक्षा जालंधर के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुई थी। देशभक्ति और क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित होने के उपरान्त वह क्रान्तिकारी दलों से जुड़ गई। अपने अध्ययन काल के दौरान ही सुशीला दीदी स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जुलूस को बुलानाए क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए गुप्त सूचनाओं को पहुंचाना एवं धन संग्रह करने में संलग्न हो गई। क्रान्तिकारी गतिविधियों के समर्थन में किए जा रहे कार्यों के दौरान ही उनकी भेंट भगत सिंह से हुई। भगत सिंह के जरिये उनकी भेंट भगवती चरण और उनकी पत्नी दुर्गा देवी वोहरा से हुई।

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