स्वतंत्रता आंदोलन के भूले-बिसरे सेनानी
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|Kendra Bharati September 2022
जो समाज पूर्वजों की विरासत एवं थाती को भूल जाता है, वह जड़ों से कट जाता। अपने पूर्वज एवं उनके कार्यों को स्मरण करते रहने से अपने होने का अर्थ ज्ञात रहता है, राष्ट्रीय एकता एवं अस्मिता बोध भी जाग्रत रहता है। एकता में शक्ति है। विखंडन में पतन। विश्व की कई सभ्यताएँ खंड-खंड होकर ही नष्ट हुई हैं। अतः भारत हैं बोध जाग्रत रहना चाहिए, ताकि भारत अखंड रह सके।
डॉ. आनंद पाटील
स्वतंत्रता आंदोलन के भूले-बिसरे सेनानी

‘स्वतंत्रता' की पूर्ण प्राप्ति तब तक नहीं होती, जब तक उसके साथ "संग्राम' अथवा 'आंदोलन' शब्द नहीं जुड़ते। 'स्वतंत्रता आंदोलन के दीर्घकालिक संघर्ष को लघुतर प्रमाणित करने के उद्देश्य से प्रायः 'संग्राम' को 'विद्रोह' कहा गया और ऐसा ही लिखा जाता रहा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम की व्यापकता को कम आंकना षड्यन्त्र ही कहा जा सकता है। इसी शृंखला में संग्राम एवं आंदोलन से प्राप्त स्वतंत्रता को नकार कर, देश में अस्थिरता उत्पन्न करने की इच्छा से ग्रसित प्रदर्शन - प्रेमी (राष्ट्रद्रोही) युवाओं के 'आज़ादी- आज़ादी' नारों में भारत को खोखला बनाने का षड्यन्त्र दिखाई देता है। अतः 'आजादी' शब्द में पवित्र भाव होने के बावजूद उसका घनघोर अर्थसंकोच हो चुका देश को अस्थिरता की ओर ले जानेवाला यह नारा कब गीत बना, पता ही नहीं चला। कहना न होगा कि 'आजादी' राष्ट्र हितचिन्तकों की दृष्टि से 'स्वतंत्रता संग्राम की पवित्रता एवं सेनानियों के बलिदान एवं महात्म्य को कम आंकनेवाला प्रतीत होता है। हम 'स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव' मना रहे हैं, परन्तु अज्ञात एवं अदृश्य शक्ति के दबाव में गौरवान्वित करनेवालीं स्मृतियों को ‘आज़ादी का महोत्सव' अमृत कहने को बाध्य हैं? 'स्वतंत्रता संग्राम' है । ( आंदोलन ) उल्लेख एवं उच्चारण से ही राष्ट्रप्रेमियों की आत्मा झंकृत हो उठती है। इसलिए जब-जब निष्क्रियता, राष्ट्राभिमान का लोप हो अथवा सुषुप्तावस्था उत्पन्न होने लगे, 'स्वतंत्रता संग्राम' की स्मृतियों का पुनःस्मरण करना चाहिए। यह कहना अत्युक्तिपूर्ण नहीं होगा कि ‘आज़ादी’ को कृतघ्न, बिकाऊ, स्वार्थलोलुप एवं अतृप्त आत्माओं ने कुल मिलाकर, लुच्चे-लफंगों ने अपहृत कर लिया है।

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