वेदों में नदी या बहनेवाली धारा को सचेतन सत्ता के प्रवाह का प्रतीकात्मक वर्णन करते हुए कहा गया है कि सरस्वती अन्तःप्रेरणा की नदी है, जो सत्यचेतना से निकल कर बढ़ती है। सरस्वती का व्युत्पत्यर्थ है गतिशीला, I गतिमती । गतिशीलता के आधार पर ही सरस्वती प्रतीक ज्ञान, अन्तःप्रेरणा की वाणी, ज्योति आदि के अर्थ में स्वीकृत है। इस आधार पर सरस्वती सत्य की बहती हुई धारा की, दिव्य अन्तःप्रेरणा की एवं बाणी की, श्रुति की स्पष्टतः वाणी एवं सरस ज्ञान के अर्थ के आधार पर परमात्मा की प्रतीक निष्क्रिय ब्रह्म का सक्रिय रूप भी हो जाती है। सरस्वती के रूप के स्थिरीकरण की दृष्टि से मधुच्छन्दस की सरस्वती सम्बन्धी ऋचाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं -
पावकाः नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती ।
यज्ञं वष्टु धियावसुः।।
वोदयित्री सूनूताणां वेतन्ती सुमतीनाम् ।
यज्ञं दघे सरस्वती ॥
महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना ।
धियो धियो विश्वा वि राजति ।।
(ऋग्वेद १/२/१०-१२ एवं यजुर्वेद २०-८४-८६)
अर्थात पावक सरस्वती! समृद्धि के अपने रूपों की सम्पूर्ण समृद्धता के साथ विचार के द्वारा ऐश्वर्यशाली होकर हमारे यज्ञ को चाहें। सुखमय सत्यों की प्रेरयित्री चेतना में सुमतियों को जागृत करनेवाली सरस्वती यज्ञ को धारण करती हैं। सरस्वती ज्ञान द्वारा, बोध द्वारा चेतना के अन्दर बड़ी भारी बाढ़ को (कतम की व्यापक गति को) जागृत करती है और समस्त विचारों को प्रकाशित कर देती है।
ऋग्वेद की इन ऋचाओं में सरस्वती को वाजेभिर्वाजिनीवती (अन्तःप्रेरणा और ज्ञानादि की समृद्धता से परिपूर्ण), थियावसुः (ज्ञान विज्ञान विचारादि की सम्पति से ऐश्वर्यवती), चोदयित्री सुन्तानाम् (सुखमय सत्यों की प्रेरिका), चेतन्ती सुमतिनाम् (उत्तम बुद्धियों को जगानेवाली), महो अर्णः प्रचेतविती (चेतना की बाढ़ ज्ञान समुद्र ऋतम की व्यापक गति की प्रकाशिका) आदि कहा है। इससे यह स्पष्ट है कि सरस्वती सत्यचेतना से ऋतम या महः से अर्णः (अ) सानुः से अवरोहण करनेवाली अन्तःप्रेरणा की धारा है, बह अन्तःप्रेरणा की, वाणी की, श्रुति की देवी है।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष