१ अप्रैल, १८८६ ई. (चौत्र शुक्ल प्रतिपदा वि. सं. २०४६ ) को नागपुर (महाराष्ट्र) के वेदपाठी परिवार में जन्मे जन्मजात राष्ट्रभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जिन्हें कालान्तर में विश्व ने महान क्रान्तिकारी विचारक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के रूप में जाना और स्वीकारा। बालक केशव के पिता राष्ट्रभक्ति की मिसाल थे और उनकी माताजी संस्कारों की जननी। दोनों के आचार-विचार का केशव के बालमन पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था। घर में यदि स्वतंत्रता के तराने छिड़ते हों, अंग्रेजी परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने का प्रयास होता हो, धार्मिकता की पराकाष्ठा हो तो उस घर में देशभक्ति की धारा का बहना स्वाभाविक ही है। बाल केशव इसी वातावरण में बड़े हो रहे थे तो उनके भीतर भी अंग्रेजी परतंत्रता को उखाड़ फेंकने की इच्छाशक्ति थी। परतंत्रता उनके लिए मृत्यु सदृश्य थी। बाल केशव को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो देशभक्ति एवं समाज के प्रति संवेदना ईश्वरीय देन थी।
वीर केशव में अंग्रेजों की परतंत्रता के प्रति कितना क्षोभ था, इसका प्रणाम तो उन्होंने ८ वर्ष की आयु में ही दे दिया था जब १८६७ में रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के हीरक महोत्सव के निमित्त विद्यालय में बांटी गई मिठाई को न खाकर उन्होंने उसे कूड़े में फेंक दिया था। सोचिए, आयु के आठवें वर्ष में जहाँ बच्चे मिठाई देखकर ललचा जाते हैं, केशव ने वह मिठाई मात्र इसीलिए फेंक दी क्योंकि वह उस देश की रानी के उत्सव में दी जा रही थी जिसने भारत को परतंत्रता में जकड़ रखा था, जो भारतीयों पर अत्याचार के नित नए अध्याय लिख रही थी। कुल मिलाकर इस छोटी आयु में भी उन्हें परतंत्रता की मिठाई खाना लज्जाजनक लगता था।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष