उन्होंने जनजातीय जननायक टंट्या मामा की जन्मस्थली बड़ौदा आहीर में एक सभा को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधते हुए कहा कि जब अंग्रेज टंट्या को फांसी दे रहे थे, तब कांग्रेस तो विरोध कर रही थी, लेकिन संघ अंग्रेजों के समर्थन में खड़ा था। राहुल इस तथ्य से अंजान हैं कि सं १८८८ में जब टंट्या भील को फांसी दी गई थी तब संघ अस्तित्व में ही नहीं आया था । संघ की स्थापना इस घटना के ३७ वर्ष बाद २७ सितम्बर, १६२५ को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी । यही नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन भी इस घटना के महज तीन वर्ष पहले २८ दिसम्बर, १८८५ को हुआ था। उस समय तक कांग्रेस की पहुँच दूर-दराज के वनवासी इलाकों में नहीं थी। खंडवा के जिस निर्माण क्षेत्र में टंट्या भील और उनका समुदाय निवास करते थे, वहाँ इन्दौर के होल्कर शासक थे और वे अंग्रेजों के आधिपत्य में अपना शासन चला रहे थे। टंट्या जब अंग्रेजों के शोषण, दमन और धर्मांतरण से परेशान हो गए, तब उन्होंने अंग्रेजों से मुक्ति का शंखनाद कर दिया। उनका साथ वनवासियों के अलावा किसी ने नहीं दिया।
टंट्या भील का जन्म मध्य प्रदेश के बिर्दा गांव में हुआ था। सन १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जब पूरा देश विद्रोह की चिंगारी से सुलग रहा था, उस समय टंट्या की आयु लगभग २५ वर्ष थी। इसी दौर में अंग्रेजी कानून के बहाने ब्रिटिश हुकूमत ने टंट्या की दलीलों को दरकिनार कर उनकी पैतृक सम्पत्ति और जमीन की कुर्की कर अपनी अधीनता में ले लिया। टंट्या ने जब इस अन्याय का विरोध किया तो उन्हें खतरनाक अपराधी बताकर एक वर्ष की सजा देकर जेल भेज दिया। जेल से छूटने के बाद टंट्या ने कुछ वर्ष गुमनामी में काटे, लेकिन अंग्रेजों के क्षेत्र में बढ़ते अत्याचार और भीलों के ईसाईकरण ने उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने को विवश कर दिया।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष