१५ अगस्त, १६६६ को 'इन्कोस्पर' यानी ‘अन्तरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति', जिसे आज हम 'भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)' के नाम से जानते हैं, की स्थापना के बाद से अब तक भारत ने अन्तरिक्ष के क्षेत्र में एक लम्बा सफर तय किया है। १६ अप्रैल, १६७५ को सोवियत संघ की सहायता से छोड़ा गया ल अपनी प्रतिभा, जुनून के बल पर आकाश पर जीत ह भारतीय अभिप्रेरण है, यह विशाल, अ हमारा पहला उपग्रह आर्यभट्ट हो या ७ जून, १६७६ को दूसरा उपग्रह भास्कर, या फिर सन १६८० में भारत का पहला स्वदेश निर्मित रोहिणी... हर उपलब्ध के साथ हम अन्तरिक्ष की और अधिक गहराई तक पहुँचने में सफलता प्राप्त करते गए हैं। पहले धीरे-धीरे और फिर बाद में बहुत तेज गति से हमारे अभियानों की संख्या और गति निरन्तर बढ़ती ही गई है।
अर्द्धशती से भी अधिक समय से सतत जारी हमारी इस अन्तरिक्ष यात्रा ने पिछले एक दशक में, जिस तरह बार-बार एक के बाद एक अभूतपूर्व उपलब्धियां प्राप्त की हैं, वह विश्व को विस्मित करती रही हैं न, मेहनत और और हमें गौरवानवत। वर्ष २०१४ से २०२२ जल, जमीन और सिल करने के बाद ओं का नया लक्ष्य ह 'अन्तरिक्ष'... तक इसरो द्वारा ४२ लॉन्च व्हीकल मिशन, ४४ अन्तरिक्ष यान मिशन और ५ प्रौद्योगिकी प्रदर्शक मिशन लॉन्च किये गए हैं।
२०१४ वह वर्ष था, जब हमने पहली बार पूर्ण स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग करते हुए जीएसएलवी-डी ५ की मदद से हमारे संचार उपग्रह जीसैट-१४ को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया।
मंगलयान ने बढ़ाई शान
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष