प्रश्न : गुरुदेव ! मैं नियमितरूप से संध्या करता हूँ परंतु इधर-उधर के विचार आते हैं, क्या करूँ ?
पूज्य बापूजी : विचार अच्छे आयें चाहे बुरे आयें लेकिन विचार करो कि 'विचार आते हैं किसकी सत्ता से? विचार क्यों आते हैं?'
अरे, तरंग स्वाभाविक आती है। जैसे मीठे की मिठास और नमकीन का खारा स्वाद - दोनों स्वभाव से ही होता रहता है, ऐसे ही विचार भले अच्छे-बुरे हों किंतु अच्छे विचार की अच्छाई और बुरे विचार की अठखेलियाँ इन दोनों की आधारभूत सत्ता अपना चैतन्य आत्मस्वभाव ही है। उसी सत्ता से ये होते रहते हैं। तो अपनी दृष्टि को मूल सत्ता पर ले आओ।
दूसरा, अच्छे-बुरे विचार आते क्यों हैं?
इस सृष्टि में सब अठखेलियाँ आत्मानंद-ब्रह्मानंद को छलकाने के लिए हो रही हैं।
मधु क्षरन्ति सिन्धवः।
(ऋग्वेद : मंडल १, सूक्त ९०, मंत्र ६)
विचारपूर्वक देखो तो समग्र हवाएँ और नदियाँ - समुद्र मधु-वर्षण कर रहे हैं । औषधियाँ भी चन्द्रमा की किरणें लेकर मधुमय हो रही हैं। सोचो कि 'नमकीन और मिठाई साथ में क्यों चलते हैं? ताना और बाना साथ में क्यों चलते हैं?'
आत्मा के पर्दे पर मन से रँगी हुई आत्मा की ही रोशनी अनेक नाम-रूपों में दिखाई पड़ती रहती है। यह बाहरपना, यह भीतरपना, यह ठोसपना, अब, तब, यहाँ, वहाँ, मैं, तू-सब आत्मप्रकाश ही है।
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ज्ञान के दीप, भक्ति के पुंज व सेवा की ज्योति से सजी दिवाली
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि | हमारी संस्कृति के पावन पर्व दीपावली पर दीप जलाने की परम्परा के पीछे अज्ञान-अंधकार को मिटाकर आत्मप्रकाश जगाने का सूक्ष्म संकेत है। १ से ७ नवम्बर तक अहमदाबाद आश्रम में हुए 'दीपावली अनुष्ठान एवं ध्यान योग शिविर' में उपस्थित हजारों शिविरार्थियों ने हमारे महापुरुषों के अनुसार इस पर्व का लाभ उठाया एवं अपने हृदय में ज्ञान व भक्ति के दीप प्रज्वलित कर आध्यात्मिक दिवाली मनायी।
पुत्रप्राप्ति आदि मनोरथ पूर्ण करनेवाला एवं समस्त पापनाशक व्रत
१० जनवरी को पुत्रदा एकादशी है। इसके माहात्म्य के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :
पंचकोष-साक्षी शंका-समाधान
(पिछले अंक में आपने पंचकोष-साक्षी विवेक के अंतर्गत जाना कि पंचकोषों का साक्षी आत्मा उनसे पृथक् है । उसी क्रम में अब आगे...)
कुत्ते, बिल्ली पालने का शौक देता है गम्भीर बीमारियों का शॉक!
कुत्ते, बिल्ली पालने के शौकीन सावधान हो जायें !...
हिम्मत करें और ठान लें तो क्या नहीं हो सकता!
मनुष्य में बहुत सारी शक्तियाँ छुपी हुई हैं। हिम्मत करे तो लाख-दो लाख रुपये की नौकरी मिलना तो क्या, दुकान का, कारखाने का स्वामी बनना तो क्या, त्रिलोकी के स्वामी को भी प्रकट कर सकता है, ध्रुव को देखो, प्रह्लाद को, मीरा को देखो।
पुण्यात्मा कर्मयोगियों के नाम पूज्य बापूजी का संदेश
'अखिल भारतीय वार्षिक ऋषि प्रसाद-ऋषि दर्शन सम्मेलन २०२५' पर विशेष
मकर संक्रांति : स्नान, दान, स्वास्थ्य, समरसता, सुविकास का पर्व
१४ जनवरी मकर संक्रांति पर विशेष
समाजसेवा व परदुःखकातरता की जीवंत मूर्ति
२५ दिसम्बर को मदनमोहन मालवीयजी की जयंती है। मालवीयजी कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श थे। वे अपना प्रत्येक कार्य ईश्वर-उपासना समझकर बड़ी ही तत्परता, लगन व निष्ठा से करते थे। मानवीय संवेदना उनमें कूट-कूटकर भरी थी।
संतों की रक्षा कीजिये, आपका राज्य निष्कंटक हो जायेगा
आप कहते हैं... क्या पुरातत्त्व विभाग के खंडहर और जीर्ण-शीर्ण इमारतें ही राष्ट्र की धरोहर हैं? ... राष्ट्रसेवा करने का सनातनियों ने उन्हें यही फल दिया !
ब्रह्मवेत्ता संत तीर्थों में क्यों जाते हैं?
एक बड़े नगर में स्वामी शरणानंदजी का सत्संग चल रहा था। जब वे प्रवचन पूरा कर चुके तो मंच पर उपस्थित संत पथिकजी ने पूछा कि ‘“महाराज ! आप जो कुछ कहते हैं वही सत्य है क्या?\"