श्रीकृष्ण ने तो खुलेआम रास्ता बता दिया है - जन्म कर्म च मे दिव्यं... मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं ऐसा जो तत्त्व से जानता है उसके भी जन्म, कर्म दिव्य हो जाते हैं।
जन्म किसको बोलते हैं ? छुपी हुई वस्तु प्रकट हो, जन्मे । छुपा हुआ अंतवाहक शरीर साकार रूप में प्रकट हुआ तो हो गया जन्म | अंतवाहक शरीर सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी नहीं दिखेगा। यंत्रों से जीवाणु (बैक्टीरिया) तो दिख जायेगा, और भी कई चीजें दिख जायेंगी परंतु आत्मा अथवा सूक्ष्म शरीर यंत्रों से नहीं दिख सकता है, मंत्रों से भी नहीं दिख सकता है, इतना सूक्ष्मतम होता है।
है तो जन्मदिन परंतु जन्म और कर्म दिव्य हो जायें ऐसी श्रीकृष्ण की और महापुरुषों की अनुभूतिवाली बात आपको सहज में मिल रही है।
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।...
(गीता : ४.९)
कर्म इन्द्रियों से होते हैं, मन से होते हैं, वासना से होते हैं, उनको देखनेवाला मैं चैतन्य हूँ ऐसी भगवान की मति को अपनी मति बना लो तो तुम्हारे कर्म और जन्म दिव्य हो जायेंगे।
Denne historien er fra March 2023-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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