राजा जनक पूर्वजन्म में किन्हीं ऋषि के शिष्य थे । अष्टावक्रजी और जनक दोनों गुरुभाई थे । अष्टावक्रजी को योग मार्ग में रुचि थी और जनक को ज्ञान मार्ग में रुचि थी । कोई साधक विचार - प्रधान होता है तो कोई ध्यान-प्रधान होता है; अष्टावक्रजी ध्यानप्रधान थे और अन्य शिष्य विचार-प्रधान थे।
एक बार गुरु कहीं बाहर गये थे तो ये विचार - प्रधान शिष्यगण जो अपने को बुद्धिशाली मानते थे, उन्होंने अष्टावक्रजी का खूब मजाक उड़ाया, उनके साथ खूब छेड़खानी की । वे बेचारे घबरा गये, रो पड़े ।
गुरुजी जब आये तो उन्हें रोता हुआ देखकर पूछा : "बेटा ! क्या बात है ?"
Denne historien er fra May 2023-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।