श्रीकृष्ण ने कहा : "इस एकादशी का नाम 'योगिनी' है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है। यह पापों के समूहों का नाश करती है, बुद्धि में विलक्षण योग्यता देती है और मनोवांछित फल देने में सक्षम है।
अलकापुरी के कुबेर प्रतिदिन साम्बसदाशिव भगवान का पूजन और ध्यान करते थे । कुबेर का सेवक हेममाली नाम का यक्ष उनके लिए पूजा हेतु फूल लाता था । हेममाली को अपनी पत्नी विशालाक्षी में बड़ी आसक्ति थी।
एक बार हेममाली मानसरोवर से फूल लेने गया लेकिन कुबेर के पास पहुँचने के बदले बीच में अपनी पत्नी के सहवास में इतना तो रत हो गया कि कुबेर को फूलों की बाट देखते-देखते दोपहर हो गयी। पूजा का समय व्यतीत होने पर यक्षराज कुबेर ने कुपित होकर सेवकों से पूछा : "यक्षो ! दुरात्मा हेममाली अभी तक क्यों नहीं पहुँचा?"
यक्षों ने कहा : "वह इधर आते-आते अपने घर चला गया, उसका अपनी पत्नी में बड़ा मोह है।"
कुबेर जान गये कि 'पत्नी के साथ काला मुँह करने गया तो फिर इधर समय पर फूल कैसे लाये?'
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