पुत्रदा - पवित्रा एकादशी: २७ अगस्त
युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए कहा: "हे माधव! आप बताइये कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम क्या है? उसका गुण और प्रभाव तथा पुण्यफल क्या है?"
श्रीकृष्ण कहते हैं: "युधिष्ठिर! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। प्राचीन काल की बात है। माहिष्मतीपुर बड़ा फला-फूला था और प्रजाजन बड़े सज्जन थे, सुखी रहते थे। राजा महीजित भी सज्जन था फिर भी वह प्रसन्नतारहित था। उसका कारण था कि सब सुविधाएँ होने के बाद भी उसे निःसंतान होने की पीड़ा सता रही थी।"
आखिर प्रजा के बुजुर्गों को राजा ने अपनी व्यथा बतायी कि "मैंने इस जन्म में, इस राज्य में ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके पाप के कारण मैं दुःख में, चिंता में पचता रहूँ। मैंने कभी भी रिश्ते-नातेवालों या खुशामदखोरों को अधर्मयुक्त देख के भी अपना समझ के दंड न दिया हो ऐसा मुझे स्मरण नहीं है और अपना समझ के उन्हें पदोन्नत कर दिया हो ऐसा अन्याय भी मैंने नहीं किया। मैं तटस्थता से न्याय करता हूँ इसके आप सभी साक्षी हो। आप ही बताओ क्या मैं पापी हूँ?"
प्रजाजन बोले: "नहीं राजन्!"
"तो फिर यह कौन-से पाप का फल भोग रहा हूँ जो मैं निःसंतान हूँ। आप लोग इसका विचार करें।"
Denne historien er fra August 2023-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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