मजा तो नहीं आया, सजा मिल गयी
एक बच्चे को बीड़ी पीने का शौक लगा। उसके काका को बीड़ी पीने की आदत थी। उस बच्चे के पास पैसे थे नहीं इसलिए उसके काका बीड़ी पीकर जो टुकड़े फेंक देते थे उन्हें इकट्ठा करता, पीता और धूआँ निकालता था।
जूठी बीड़ी फूँकी... मजा तो नहीं आया परंतु सजा मिल गयी कि आदत पड़ गयी। आदत बुरी बला है। कभी बीड़ी के टुकड़े ठीक से मिलें-न मिलें तो नौकरों की जेब से पैसे चुराने लगा। कुछ हफ्ते बाद किसीने कहा कि 'अमुक प्रकार की जो वनस्पति की लकड़ी आती है उसको फूँकने से भी बीड़ी जैसा धूआँ निकलता है, मजा आता है।"
वह लकड़ी भी फूँक के देखी, उसमें भी कोई मजा नहीं आया। सोचा कि 'बीड़ी पीने से तो फेफड़े कमजोर होते हैं, निकोटिन जहर शरीर में मिश्रित होता है और मुँह से बदबू भी आती है फिर भी यह आदत...।' ऐसे करते-करते उसका अंतरात्मा धिक्कारने लगा और एक दिन वह खूब रोया। भगवान से प्रार्थना की कि 'हे भगवान ! मेरी बुरी आदत छूट जाय।...'
Denne historien er fra September 2023-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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