हर व्यक्ति, परिवार, समाज व देश अपना हित चाहता है; मंगल की अभिलाषा रखता है। वह कैसे हो इसका गहन विश्लेषण कर भारत के महापुरुषों ने साररूप निष्कर्ष बताया है कि
परहित बस जिन्ह के मन माहीं ।
तिन्ह कहूँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥
जिनके मन में परहित का भाव है उनके लिए जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। उनका स्वयं का हित अपने-आप हो जाता है। अतः यथाशक्ति परहित करते हुए यदि सर्वहित के विचार किये जायें तो अपने एवं औरों के कल्याण के द्वार खुलने लगते हैं।
ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के चित्त से स्वतःस्फूर्त सृष्टि के प्रत्येक जीव के कल्याण का सद्विचार सभीको सच्चा मार्ग दिखाता है। देवर्षि नारदजी के सद्विचार ने महर्षि वेदव्यासजी को श्रीमद्भागवत रचने की प्रेरणा दी, जिससे करोड़ों लोगों का भला हो रहा है। संत तुलसीदासजी के सद्विचार ने करोड़ों को शांति दी, 'रामायण' के रस से आनंदित कर दिया। ऐसे ही संत आशारामजी बापू के सद्विचारों ने एक आध्यात्मिक क्रांति खड़ी कर दी। इन विचारों को आत्मसात् कर जब परोपकारी पुण्यात्मा जन संत और समाज के बीच सेतु बनते हैं, महापुरुष के दैवी सेवाकार्यों में जुट जाते हैं तब दुनिया की दशा ही नहीं, दिशा भी बदल जाती है। आइये, एक दृष्टि डालते हैं इस वैचारिक क्रांति के गौरवपूर्ण बिंदुओं पर :
विचार का संस्कार बन जाना
Denne historien er fra November 2023-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।