पूर्वकाल में लोग गौ की महिमा जानते थे और उसका खूब लाभ भी लेते थे इसलिए गोहत्या नहीं होती थी। दूध, मक्खन, घी आदि से लोग परिपुष्ट रहते थे। ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सत्संग-श्रवण व गव्यों का सेवन विशेषरूप से होता था। गौआधारित अर्थतंत्र के बल पर भारत में आर्थिक समृद्धि बहुत थी।
महाभारत में प्रसंग आता है कि च्यवन ऋषि जल में खड़े-खड़े तप करते थे। वे जल-जंतुओं को अपनी संतान की नाईं ही स्नेह करते थे। १२ वर्ष जल में साधना करने से वे जल-जंतुओं के परिवारवाले जैसे ही हो गये। एक दिन गंगायमुना के संगम में मछुआरों ने लम्बा-चौड़ा भयंकर जाल फैला दिया। जब उन्होंने मिल के जाल को खींचा तो मछलियों के साथ कई जलीय जंतु और च्यवन ऋषि भी जाल में फँसकर आ गये।
पानी से बाहर ज्यों जाल खींचा तो बहुतसे मत्स्य तड़पने लगे। उनकी तड़प देखकर जैसे अपना बच्चा तड़पता हो तो पिता को पीड़ा होती है उसी प्रकार च्यवन ऋषि को बड़ी पीड़ा हो रही थी। जब मछुआरों ने जाल में च्यवन ऋषि को फँसा देखा तो वे घबरा गये, क्षमायाचना करने लगे।
Denne historien er fra November 2023-utgaven av Rishi Prasad Hindi.
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