महिला उत्पीड़न क़पडे नहीं डे सोच बदलो
Grihshobha - Hindi|April Second 2023
महिलाओं को समान अधिकार, अत्याचार व भेदभाव पर प्रतिबंध की बातें भले हो रही हैं, लेकिन फिर भी अत्याचार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. वजह जान कर चौंक जाएंगे आप...
मिनी सिंह
महिला उत्पीड़न क़पडे नहीं डे सोच बदलो

झारखंड के दुमका शहर में 12वीं कक्षा की एक छात्रा को एक लड़के ने सिर्फ इसलिए जिंदा जला दिया क्योंकि लड़की ने लड़के के प्यार को न कर दिया. लड़की नाबालिक थी और लड़के ने उसे धमकी दी थी कि अगर उस ने उस से बात करने से मना किया तो वह उसे जान से मार डालेगा. जब लड़की ने उस की बात नहीं मानी तो लड़के ने उस के ऊपर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. बुरी तरह से जली लड़की ने 5 दिन बाद दम तोड़ दिया.

हैरानी तो इस बात की हो रही थी कि आरोपी शाहरुख को जब पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी तब उस की आंखों में दुख, पछतावा या हिचकिचाहट नहीं थी, बल्कि वह मुसकरा रहा था. वह सीना ताने ऐसे चल रहा था जैसे उस ने कोई जंग जीत ली हो. इस से तो यही लगता है कि पितृसत्तात्मक समाज में उसे भी बचपन से यही सीख मिली है कि वह पुरुष है तो उस की बात उस से कमजोर लोगों खासकर महिलाओं को माननी ही होगी.

लड़का दूसरे धर्म का था. लेकिन मामला यहां सिर्फ मजहब का नहीं, बल्कि यह था कि इनकार करने वाली लड़की थी और सुनने वाला लड़का. वैसे इस तरह के मसले पर सारे पुरुष हममजहब हो जाते हैं. पुरुष हिंसा का रास्ता इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इसी माध्यम से सबकुछ प्राप्त कर सकता है जिसे वह एक मर्द होने के कारण अपना हक समझता है. 'डर' और 'अंजाम' जैसी फिल्में इसी सोच के इर्दगिर्द बनीं थी कि 'तू हां कर या न कर, तू है मेरी किरण...' ऐसे सिरफिरे लोगों को लगता है लड़की के न करने से क्या होता है. वह उसे चाहिए तो बस चाहिए और जब ऐसा नहीं हो पाता तो वह उस की जान लेने से भी नहीं हिचकिचाता है.

बदले की भावना 

'नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसन' में पुरुषों की इसी रिजैक्शन सैंसिटिविटी पर कई स्टडीज की हैं, जो स्वीडन से ले कर बंगलादेश जैसे छोटेबड़े कई देशों में हुईं, जहां पाया गया कि रिजैक्शन के मामले में करीब सारे पुरुष एक ही पायदान पर खड़े हैं, औरत की न को कहीं न कहीं इसे पौरुष पर चोट मानते हैं और मन में बदला लेने की सोच बैठते हैं.

Denne historien er fra April Second 2023-utgaven av Grihshobha - Hindi.

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