समझौता नहीं आजादी चुनें
Grihshobha - Hindi|July First 2023
जब औरत समझौते के बजाय आजादी चुनती है तो यह पुरुषप्रधान समाज को कड़वा लगने लगता है. ऐसे में सवाल है कि आखिर एक औरत ही क्यों बारबार आत्मसम्मान को दांव पर लगा कर रिश्ते निभाने की कोशिश करती रहे...
गरिमा पंकज
समझौता नहीं आजादी चुनें

तू नहीं तो कोई और सही, कोई और नहीं तो कोई और सही बहुत लंबी है यह जिंदगी, मिल जाएंगे हम को लाखों हसीं.

कुछ ऐसी ही कहानी रही है गुरुग्राम में रहने वाली अनीता की. अनीता एक पंजाबी परिवार की 22 साल की खूबसूरत, लंबी, गोरी लड़की थी जिसे कोई एक बार देख ले तो देखता रह जाए. वह जितनी आकर्षक थी उतनी ही चुलबुली भी खूब बातें करती थी और नाजुक होने के बावजूद दबंग भी थी. बचपन से उसे अपने लिए इतनी तारीफें सुनने को मिली थीं कि उस के चेहरे से साफ झलकता था. उस के पिता बिजनैसमैन थे. घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी. मगर एक हादसे में उस के पिता की मौत हो गई. उस वक्त अनीता 17 साल की थी और उस की बड़ी बहन 20 साल की.

पिता के जाने के बाद मां ने अनीता की बहन की शादी जल्दी करा दी ताकि जवान लड़की के साथ कुछ ऊंचनीच न हो जाए. फिर मां अनीता के लिए भी लड़का देखने लगी. पिता के बाद उन की हैसियत किसी बड़े घर में रिश्ते की तो थी नहीं सो मां ने एक साधारण परिवार में उस की शादी करा दी. लड़का प्राइवेट स्कूल में टीचर था. घर में आर्थिक तंगी थी. घर भी छोटा सा था जिस में ननद, देवर और सासससुर समेत कुल 6 प्राणी रहते थे. अनीता ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो सास ने मना कर दिया.

प्रैगनैंसी सुखद नहीं रही

अनीता के लिए वहां 1-1 दिन काटना कठिन होने लगा. पति देखने में साधारण था. उसे गुस्सा बहुत जल्दी आता था. छोटीछोटी बात पर दोनों लड़ने लगते. पति मारपीट भी करता था. अंत में अनीता ने उस शादी से निकलना ही बेहतर समझा और ₹2 लाख ले कर आपसी सहमति से अलग हो गई.

अनीता ने जल्द ही दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति की आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर थी. पैसों की कमी नहीं थी और घर में सदस्य भी कम थे. सिर्फ देवर और ससुर साथ रहते थे. अनीता उस घर में खुश थी. जल्द ही वह प्रैगनैंट भी हो गई. उस दौरान उस के चेहरे पर हमेशा मुसकान खिली रहती. मगर जल्द ही उस की मुसकान छिन गई जब उस का मिसकैरेज हो गया. कुछ समय बाद वह फिर से प्रैगनेंट हुई.

Denne historien er fra July First 2023-utgaven av Grihshobha - Hindi.

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