जब घर बन जाए जंग का मैदान
Grihshobha - Hindi|December Second 2023
झगड़ालू मांबाप से जब युवा बच्चे हार जाते हैं, तो घर किस तरह बिखर जाता है, जरूर जानिए...
शशि पुरवार
जब घर बन जाए जंग का मैदान

"अरे यार मुझे तो घर में रहना पसंद ही नहीं है, जब देखो दोनों चिकचिक करते रहते हैं. इसे घर नहीं कहते हैं, मुझे तो बाहर दोस्तों के साथ ही अच्छा लगता है या फिर अपना कमरा, जहां लैपटौप पर मूवी देखो व मोबाइल से गप्पें मारो, बस यही हमारी दुनिया है और हमारा सुकून. हमें जो पसंद है वही करेंगे," गुड़िया अपनी सहेली से कह रही थी. वह हमेशा अपने घर से दूर भागती है, जहां मांबाप बातबात पर झगड़ते हैं. उस ने कभी उन्हें प्यार से बात करते ही नहीं सुना, वह घर से बाहर सुकून तलाशने लगी.

आज सुबहसुबह नीलेश का फोन आया, बहुत गुस्से में था, "दीदी, आज मैं पूरी तरह हार गया. इन का कुछ नहीं हो सकता. जब देखो भूखे शेर की तरह खाने को दौड़ते हैं. जरा सा भी चैन नहीं है. बातबात पर झगड़ा करते रहते हैं, एक भी चुप नहीं होना चाहता है," नीलेश गुस्से में लालपीला हो रहा था.

"हां सही बात है भाई कितना लड़ते हैं, हम कितना भी अच्छा करें इन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है. कभी आपस में झगड़ेंगे तो कभी हमारे सिर पर तलवार लटकी रहती है, " निशा कुछ कहती कि तभी दूसरा भाई आ गया.

वह भी गुस्से में अपना आपा खोने लगा, “इस घर में कभी शांति नाम की चीज नहीं मिलेगी. घर का माहौल इतना खराब रहता है कि हम 2 पल चैन से बैठे नहीं सकते, नौकरी का काम घर से ही चलता है, मन करता है दूसरे शहर चला जाऊं. इन के लिए हम करकर के मर जाएंगे तो भी इन को कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी, झगड़ने के लिए कुछ नहीं मिला तो सूई हमारी तरफ घूम जाती है. हम इतने बड़े पद पर काम करते हैं, इन के साथ खड़े होने में शर्म आती है."

इधर बात करते समय नीलेश भी उग्र हो गया, "यार, इन्हें मरना हो मरें, कम से कम हमें तो चैन से जीने दें. दो पल खुशी नहीं दे सकते हैं, मैं तो भविष्य में अपने बच्चों पर इन का साया नहीं पड़ने दूंगा, दीदी तुम मुझे कुछ मत कहना." 

Denne historien er fra December Second 2023-utgaven av Grihshobha - Hindi.

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