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जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई

Naye Pallav

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Naye Pallav 19

व्यंग्य लेखन के बेताज बादशाह श्री हरिशंकर परसाई जबलपुर में हमारे पड़ोसी थे। बचपन से मैं उन्हें परसाई मामा कहती आई हूं । मैंने उनके बूढ़े पिताजी को भी देखा है, जिन्हें सब परसाई दद्दा कहते थे। वह दिनभर घर के बाहर डली खटिया पर लेटे या बैठे तंबाकू खाया करते थे। मैं बचपन में उनके तंबाकू खाने की नकल किया करती थी। सबका मनोरंजन होता और सब बार-बार मुझसे उनके तंबाकू खाने की एक्टिंग करवाते थे।

- डॉ. गीता पुष्प शॉ

जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई

परसाई मामा की मां पहले ही गुजर चुकी थीं। पिता और पांच भाई-बहन, इतना बड़ा परिवार होने के कारण परसाई जी को मैट्रिक पास करते ही नौकरी करनी पड़ी। जब वे हॉफ पैंट पहनते थे, तब खंडवा के स्कूल में पढ़ाते थे। यहां उन्होंने फिल्म अभिनेता व गायक किशोर कुमार को छठी कक्षा में पढ़ाया था। परसाई मामा बताते थे कि किशोर अपने बड़े भाई अशोक कुमार के गाने गाकर सुनाया करता था। 

परसाई जी ने प्राइवेट स्कूलों में भी पढ़ाया। उन्हें वन विभाग में सरकारी नौकरी भी मिली थी। सारिका पत्रिका में प्रकाशित गर्दिश के दिन कॉलम में उन्होंने लिखा था कि उस नौकरी के दौरान वे जंगल में सरकारी टपरे में रहते थे। ईंटों पर पटरा बिछाकर उस पर बिस्तर डालकर सोते थे। रात भर पटरे के नीचे मिट्टी के गड्ढे में से चूहे निकलकर उनके ऊपर उछल-कूद करते रहते थे। बाद में उन्होंने सरकारी नौकरी भी छोड़ दी। गर्दिश के दिन खत्म कहां होते हैं, उनकी सीरीज चलती रहती है। परसाई जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। 

अचानक पिता की मृत्यु होने के बाद व बड़े भाई होने के कारण घर-परिवार संभालने की जिम्मेदारी उनके सर पर आ गई। उन्होंने परिवार को संभाला। साथ में पढ़ाई की, बहनों की शादी की। परसाई मांस्साब से स्वतंत्र लेखक बन गए। उस जमाने में लेखकों को पारिश्रमिक मिलता था, जिससे जीविका चलाई जा सकती थी। बशर्ते लेखन में मेहनत बहुत करनी पड़ती थी, पर आजकल तो पहले टीवी, फिर मोबाइल फोन आने के कारण पाठक कम हो गए हैं और कई नामी पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया है। जो पत्र-पत्रिकाएं चल रही हैं, उनमें से कइयों ने लेखकों को पारिश्रमिक देना बंद कर दिया है।

परसाई जी के संघर्षों के बीच ही उनकी बहन सीता के पति का निधन हो गया। वे अपने पांच बच्चों सहित फिर घर लौट आईं। अब परसाई जी पर इन सबके पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी आ गई थी। पर उन्होंने हार नहीं मानी और कमर कसकर कलम चलाने लगे। इसी कारण उन्होंने अपनी शादी नहीं रचाई और आजीवन कुंवारे रहे। याद आता है, तब होली के समय अखबारों में नामी लोगों को टाइटल दिया जाता था या उन पर शब्दों के रंगों की पिचकरियां छोड़ी जाती थी। ऐसे ही एक अखबार ने परसाई जी के कुंवारेपन को छेड़ते हुए टाइटल दिया था रुकोगी नहीं राधिका।

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Denne historien er fra Naye Pallav 19-utgaven av Naye Pallav.

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तीन मछलियां

एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। \"जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थीं। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थीं। वह जलाशय लंबी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।

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टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान

समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा \"यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।\"

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लड़ते बकरे और सियार

एकदिन एक सियार किसी गांव से गुजर रहा था। उसने गांव के \"बाजार के पास लोगों की एक भीड़ देखी।

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एक नेता का कबूलनामा

चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सीट बंटवारे की पहली लिस्ट पार्टी जारी कर चुकी थी। कई नेताओं के नाम इस लिस्ट में नहीं थे। सभी असंतुष्ट नेता पार्टी कार्यालय में आकर हंगामा मचा रहे थे। कुछ नेता 'पार्टी अध्यक्ष मुर्दाबाद' के नारे लगा रहे थे, तो कुछ गमला-मेज-कुरसी पटक रहे थे। लोटन दास अपनी धोती खोलकर प्रवेश द्वार पर बिछा धरने पर बैठ गये। अन्य नेताओं से चिल्लाकर बोले, \"भाइयों, आप भी इस मनमानी के खिलाफ हमारा साथ दें। पैसे देकर खरीदे गये हैं टिकट ! इसके खिलाफ हम यहां नंग-धड़ंग धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे।\"

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कसबे का आदमी

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मुगलों ने सल्तनत बख्श दी

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