हे अर्जुन ! जिसे अपने जीवन के अच्छे दिनों में मृत्यु का स्मरण नहीं होता, जो अपने मन में सदा यही विश्वास रखता है कि मैं इस समय जैसी अच्छी अवस्था में हूं, वैसी ही अवस्था में सदा बना रहूंगा और इसी विश्वास के कारण जिसकी समझ में यह नहीं आता कि मृत्यु भी कोई चीज है। हे अर्जुन ! जिसकी अवस्था किसी छोटे से गड्ढ़े में रहने वाली उस मछली के समान होती है, जो यह समझती है कि यह गड्ढ़ा कभी सूखेगा ही नहीं और यही सोचकर जो किसी गहरे दहमें नहीं जाती अथवा जिसकी अवस्था उस हिरण के समान होती है, जो शिकारी के गीत में ही इतना मग्न हो जाता है कि उस शिकारी को देखना भूल जाता है अथवा उस मछली के समान होती है जो वंशी में का कांटा नहीं देखती और उसपर का आमिस खाने का प्रयत्न करती है अथवा जिसकी अवस्था उस पतंगे के समान होती है जो दीपक की लौ देखते ही इतना भूल जाता है कि उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रह जाता कि यह दीपक मुझे जला डालेगा, वही अज्ञानी है।
जिस प्रकार सामने खड़े की हुई सूली की ओर दौड़ने वाले के लिए प्रत्येक पग पर मृत्यु पास आती जाती है, उसी प्रकार ज्यों-ज्यों उसका शरीर बढ़ता है, ज्यो-ज्यों दिन बीतते जाते हैं और ज्यों-ज्यों विषय भोग की सुविधा होती जाती है, त्यों-त्यों आयुष्य पर मृत्यु की छाया बराबर बढ़ती जाती है। जिस प्रकार पानी में नमक घुल जाता है, उसी प्रकार यह जीवन भी घुलता चला जाता है और मृत्यु समीप आ जाती है। पर फिर भी यह प्रत्यक्ष बात उसकी समझ में नहीं आती।
हे अर्जुन ! सारांश यह है कि जिसे विषयों के फेरे में सदा शरीर के साथ लगी रहने वाली मृत्यु नहीं दिखाई देती, उसके विषय में इसके सिवा और कोईमत हो ही नहीं सकता कि वह पुरुष अज्ञान के राज्य का अधिपति है।
जो किसी अशक्त अथवा कुबड़े को देखकर अभिमानपूर्वक उसे चिढ़ाने और उसकी नकल उतारने लगता है, परन्तु जो यह नहीं समझता कि आगे चलकर मेरी भी यही अवस्था होनेवाली है और मृत्यु को सूचना देनेवाले वृद्धावस्था के लक्षण शरीर में दिखाई पड़ने पर भी जिसका यौवन काल का भ्रम दूर नहीं होता, उस पुरुष को अज्ञान का जन्म स्थल ही समझना चाहिए।
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तीन मछलियां
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। \"जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थीं। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थीं। वह जलाशय लंबी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।
टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा \"यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।\"
लड़ते बकरे और सियार
एकदिन एक सियार किसी गांव से गुजर रहा था। उसने गांव के \"बाजार के पास लोगों की एक भीड़ देखी।
एक नेता का कबूलनामा
चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सीट बंटवारे की पहली लिस्ट पार्टी जारी कर चुकी थी। कई नेताओं के नाम इस लिस्ट में नहीं थे। सभी असंतुष्ट नेता पार्टी कार्यालय में आकर हंगामा मचा रहे थे। कुछ नेता 'पार्टी अध्यक्ष मुर्दाबाद' के नारे लगा रहे थे, तो कुछ गमला-मेज-कुरसी पटक रहे थे। लोटन दास अपनी धोती खोलकर प्रवेश द्वार पर बिछा धरने पर बैठ गये। अन्य नेताओं से चिल्लाकर बोले, \"भाइयों, आप भी इस मनमानी के खिलाफ हमारा साथ दें। पैसे देकर खरीदे गये हैं टिकट ! इसके खिलाफ हम यहां नंग-धड़ंग धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे।\"
भोलाराम का जीव
ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास - स्थान 'अलॉट करते आ रहे थे... पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।
कसबे का आदमी
सुबह पांच बजे गाड़ी मिली। उसने एक कंपार्टमेंट में अपना बिस्तर लगा दिया। समय पर गाड़ी ने झांसी छोड़ा और छह बजते-बजते डिब्बे में सुबह की रौशनी और ठंडक भरने लगी। हवा ने उसे कुछ गुदगुदाया। बाहर के दृश्य साफ हो रहे थे, जैसे कोई चित्रित कलाकृति पर से धीरे-धीरे ड्रेसिंग पेपर हटाता जा रहा हो। उसे यह सब बहुत भला - सा लगा। उसने अपनी चादर टांगों पर डाल ली। पैर सिकोड़कर बैठा ही था कि आवाज सुनाई दी, ' पढ़ो पटे सित्ताराम सित्ताराम...'
मुगलों ने सल्तनत बख्श दी
हीरेजी को आप नहीं जानते और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया।
भिखारिन
जाह्नवी अपने बालू के कम्बल में ठिठुरकर सो रही थी। शीत कुहासा बनकर प्रत्यक्ष हो रहा था। दो-चार लाल धारायें प्राची के क्षितिज में बहना चाहती थीं। धार्मिक लोग स्नान करने के लिए आने लगे थे।
अंधों की सूची में महाराज
गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?
कौवे और उल्लू का बैर
एकबार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू, आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है; व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता; इसलिये पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाय। कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुना।