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हम इंस्टा फेसबुक वासी हैं
सोशल मीडिया भी गजब पाठशाला है चाहे जिसे पलभर में बदल देता है. कोई मीर है तो कोई गालिब कोई परसाई तो कोई प्रेमचंद. पर असल में कौन क्या है कोई नहीं जानता.

गोल्ड लोन बाजार में नएनए खिलाड़ी
भारत में सोना गिरवी रख कर उधार देने वाले साहूकारों, ज्वैलर्स और व्यापारियों के पास इस बाजार की लगभग 65 फीसदी हिस्सेदारी है. जबकि बाकी 35 फीसदी हिस्सेदारी बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच है. अपना बिजनैस चलाने के लिए ये सभी महिलाओं के गहनों पर नजर गड़ाते हैं जिन के लिए उन की संपत्ति व सम्मान उन का अपना सोना है

जमानत पर हैं तो क्यों नहीं जा सकते विदेश
किसी आरोपी को जमानत पर रिहा किए जाने पर अदालत कुछ शर्तें लगा सकती है, जैसे विदेश यात्रा पर जाने के लिए अदालत से अनुमति लेना वगैरह लेकिन सवाल यह है कि अदालत जब यात्रा के अधिकार को व्यक्तिगत आजादी का हिस्सा मानती है तो जमानत मिलने के बाद विदेश जाने पर रोक क्यों?

'कैसी हो नेमप्लेट की डिजाइन
इंटीरियर डिजाइन में नेमप्लेट को ले कर भी तमाम प्रयोग हो रहे हैं. नेमप्लेट छोटी चीज भले हो, इस का प्रभाव बड़ा होता है. ऐसे में इस को सावधानी से तैयार करवाना चाहिए.

जाति पूछ कर मारते हैं
जान कर हैरानी होती है कि हाल के दिनों में जिन दलितों पर जानबूझ कर ज्यादा निशाना साधा गया उन में से अधिकतर पढ़े लिखे युवा थे. एटा का अनिल कुमार बीफार्मा और बीएससी पास था. मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के लीलदा गांव का जगदीश जाटव बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर था जिस की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी.

घर को न बनाएं कैमिस्ट शौप
आजकल सोशल मीडिया पर नएनए उत्पादों के बारे में जानकारियां मिल तो जा रही हैं मगर वे कच्ची होती हैं. ऐसे में लोग सोचते हैं कि डाक्टर के पास जा कर बारबार शरीर का चैकअप कराने से बेहतर है उपकरण खरीद कर घर में ही सारे टैस्ट कर लो. लेकिन यह खतरनाक हो सकता है.

पूत सपूत तो क्यों धन संचय
सवाल बहुत पेचीदा है कि पैसा अपने शौक पूरे करने के लिए खर्च किया जाए या संतान के लिए छोड़ दिया जाए. कहना बहुत आसान है और तात्कालिक प्रतिक्रिया यह है कि अपने शौक पूरे किए जाएं. लेकिन इस पर अमल 10 फीसदी से भी कम पेरेंट्स ही कर पाते हैं.

बिहार चुनाव क्या भाजपा देगी नीतीश को झटका
नीतीश कुमार की साख अब पहले जैसी नहीं रही. एक तो उन की राजनीतिक निष्ठा पासे की तरह पलटती रहती है, दूसरे, उन के खराब स्वास्थ्य और उन की सरकार की कार्यशैली के कारण उन के प्रति विश्वास में कमी आई है. उन के नेतृत्व को ले कर अब सवाल उठने लगे हैं.

शिक्षा में धर्म का संक्रमण खतरनाक
सरकार की धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने और विज्ञान को पीछे धकेलने की नीति देश के भविष्य के लिए हानिकारक हो सकती है. इसलिए शिक्षा नीतियों में संतुलन और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है, ताकि हम एक प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ सकें.

आतंकवाद से मौतें युद्धों पर भारी
कश्मीर घाटी के पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को आतंकवादी हमला हुआ. आतंकवाद से लगभग पूरी दुनिया त्रस्त है. यूरोप, अमेरिका और एशिया आतंकवाद का दंश झेल रहे हैं और आतंकवाद से लगातार लड़ भी रहे हैं लेकिन आतंकवाद खत्म नहीं हो पा रहा. सवाल यह है कि पूरी दुनिया में आतंकवाद है क्यों? आतंकवाद के पीछे राजनीति है या धर्म? आतंकवादियों के निशाने पर निर्दोष लोग ही क्यों होते हैं?

मुकदमों की बढ़ती तादाद
अदालतों के बाहर तो अकसर पीड़ित लोग न्याय प्रक्रिया को कोसते नजर आ जाते हैं कि यह तो हद हो गई, सालों से चक्कर लगा रहे हैं लेकिन फैसला तो दूर की बात है, 4-6 सालों में सुनवाई ही पूरी नहीं हो पाई.

दिखावे की हरियाली
आज़कल लोगों के घरों में फर्नीचर, परदे, तकिए, दीवार का रंग सबकुछ ग्रीन हो चला है.

मुसीबतों से घिरे अकेले बुजुर्ग
अकेले बुजुर्ग घरेलू हिंसा से ले कर आपराधिक घटनाओं तक के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में घरपरिवार, कानून और समाज सभी के लिए इन की परेशानियों का समाधान करना जरूरी हो जाता है.

एसिड अटैक कैसे रुकें
भारत में 2013 से एसिड के खुले बाजार में बिक्री पर रोक है, इस के बावजूद यह खुलेआम बिकता है.एसिड अटैक होने पर अगर जान बच जाए तो भी जिंदगी नरक बन जाती है.

तलाक को सरल बनाना जरूरी
तलाक की प्रक्रिया को सरल करना न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानसिक शांति के लिए जरूरी है, बल्कि यह सामाजिक अपराधों को कम करने में भी मददगार हो सकता है.

विदेशी जेलों में बंद भारतीयों के लिए क्या कर रही है सरकार
विदेशी जेलों में विचाराधीन भारतीय कैदियों की संख्या 10,152 है.

सौतेला पिता सहारा या खतरा
कई मामले देखने को मिले हैं जहां किसी बच्ची या लड़की के साथ उस के सौतेले पिता ने या तो दुष्कर्म को अंजाम दिया या करने की कोशिश की.

मल्टीप्लैक्स कल्चर बरबाद कर रहा भारतीय सिनेमा को
मल्टीप्लैक्स की लत लग जाने के चलते दर्शक अब सिंगल थिएटर में जाना अपनी तौहीन समझते हैं, तो वहीं मल्टीप्लैक्स के महंगे टिकट खरीद कर फिल्म देखने के लिए उन की जेब गवाही नहीं देती.इस से नुकसान फिल्म इंडस्ट्री का हो रहा है.

कट्टरता की नहीं विचारधारा लड़ाई की
राहुल गांधी कई बार अच्छी बातें कह जाते हैं लेकिन वे उन को अमलीजामा पहनाने में चूक जाते हैं.

राजनयिक के साहस को दिखाती फिल्म
काफी अरसे से बौलीवुड में अच्छी कहानियों का अभाव सा चल रहा है, इसलिए या तो इतिहास की घटनाओं पर या बायोपिक्स और सच्ची घटनाओं पर फिल्में बनने लगी हैं.

राजेश खन्ना आज के अभिनेताओं से अलग संदेश देने वाला सुपरस्टार
बाबू मोशाय समाज नफरत से नहीं मोहब्बत से बनता है

धन के मोह में फर्ज से दूर हो रहा चिकित्सा जगत
आज कुकुरमुत्तों की तरह जगहजगह उग रहे निजी अस्पताल पैसा बनाने की फैक्टरी बन गए हैं, जो छोटी सी बीमारी में भी तमाम तरह के टैस्ट करवाते हैं और वह भी अपने कहे हुए पैथलैब्स से.

कलाकारों का सारा ध्यान अभिनय के बजाय प्रौपर्टी खरीदने बेचने पर
पहले कलाकार अभिनय को सिर्फ कला से जोड़ कर देखते थे इसलिए उन्हें प्रोपर्टी जोड़ने या अत्यधिक पैसों का लोभ नहीं था। बदलते समय की फिल्मों में कॉर्पोरेट के दखल और कलाकारों की पैसा कूटने की भूख ने कला को दोयम बना दिया।

भारत में बढ़ती कंगाली
क्या सचमुच में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा बढ़ रही है और गरीबी भी इतनी बढ़ रही है कि लोग खर्च करने लायक पैसा भी नहीं कमा पा रहे?

औरंगजेब की कब्र पर राजनीतिक मातम
आजकल ट्रैंड चल पड़ा है कि जिस को भी बड़ा नेता बनना होता है वह हिंदू भावनाओं को भड़काने वाला कोई विवादित बयान दे देता है.

बिहार में क्या गुल खिलाएगी कांग्रेस
बिहार के चुनाव पर देशभर की नजर लगी है. कांग्रेस लालू प्रसाद के साथ तालमेल करेगी या फिर उन के साथ केजरीवाल जैसा व्यवहार करेगी?

सिलबट्टा नहीं सिलबट्टी मानसिकता की शिकार महिलाएं
महिलाएं थकान की शिकार हो रही हैं, बीमारियों से घिर रही हैं लेकिन उफ भी नहीं कर रहीं, समानता की मांग नहीं कर रहीं. वे यह भी नहीं पूछ पा रहीं कि उन के कमाए पैसों पर उन का पूरा हक क्यों नहीं.

पूर्वजन्म के कर्म सच या अंधविश्वास
जो विश्वास तर्क पर आधारित नहीं, वह रेत पर बने घर के समान है, जो समय की कसौटी पर टिक नहीं सकता.

शादी या बच्चे खुशी का पैमाना नहीं
अब तुम्हारी उम्र हो गई है शादी की, उम्र निकल गई तो अच्छी लड़की या लड़का नहीं मिलेगा, एडजस्ट करना पड़ेगा, चौइस नहीं बचेगी आदिआदि. सिर्फ पेरैंट्स ही नहीं, सोसाइटी के लोग भी ये डायलौग्स बोलबोल कर शादी का प्रैशर बनाना शुरू कर देते हैं. क्या सच में शादी के बिना जीवन व्यर्थ है?

तीये की रस्म
सब मोहमाया है लेकिन मायारामजी ने माया जिंदगीभर छोड़ी ही नहीं. लेकिन मोक्षधाम में एंट्री से वंचित न रह जाएं, इस का इंतजाम जीतेजी जरूर करवा लिया था.