एक कहानी का अंत
Sarita|January First 2020
कितने दुख झेले थे मां ने. शायद गिनना मुश्किल था मंजू के लिए. बेटी होने के नाते वही तो थी जिस ने मां के गमों को देखा, सुना और भोगा था.
मोनिका अग्रवाल
एक कहानी का अंत

मेरे पूरे जिस्म में दर्द हो रहा है. पूरा जिस्म अकड़ रहा है. आह, कम से कम अब तो मुक्ति मिल जाए. कोई तो बुलाओ डाक्टर को," पुष्पा कराहते हुए बोल रही थी.

"शांत हो जाओ, मां. लो, मुंह खोलो, दवा पिलानी है," मंजू बोली.

" मेरी बच्ची, अब समय आ गया, मैं नहीं बचूंगी," कहते हुए पुष्पा ने गिलास लगभग छीनते हुए पकड़ा और दवा एकदम गटक ली.

This story is from the January First 2020 edition of Sarita.

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