प्रेमकथा एक जैन मुनि की
Sarita|October Second 2021
धर्म का नशा जब साधकों पर चढ़ता है तो उन्हें लगता है कि वे सीधे ईश्वर की छत्रछाया में हैं और जैसे ही यह नशा उतरता है तो सांसारिक जीवन बहुत दूर हो जाता है. धर्म के रास्ते में एग्जिट के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है. यही संघर्ष जैन मुनि सुद्धांत और साध्वी प्रज्ञा को करना पड़ा, इन्हें प्रेम करने की सजा मिली.
भारत भूषण
प्रेमकथा एक जैन मुनि की

'संन्यास में हम ने एंट्रेंस तो रखा है, एग्जिट नहीं रखा है. उस में भीतर जा सकते हैं, बाहर नहीं आ सकते. और ऐसा स्वर्ग भी नर्क हो जाता है जिस में बाहर लौटने का दरवाजा न हो. वह परतंत्रता बन जाता है, जेल बन जाता है. कोई संन्यासी लौटना चाहे तो कोई क्या कर सकता है. वह लौटता है तो आप उस की निंदा करते हैं, अपमान करते हैं, कंडेमनेशन है उस के पीछे.

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