हमारे देश में गेहूँ की कम उपज के साथ कई कारण हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है उपलब्ध सिंचाई के पानी का सही से इस्तेमाल न करना। गेहूं की बंपर फसल की कटाई के लिए सिंचाई के पानी की पर्याप्त व्यवस्था बहुत जरूरी है। यदि आवश्यक समय पर सिंचाई नहीं की जाती है तो उपज में भारी कमी आती है। पानी की कमी की स्थिति में, फसल की वृद्धि और विकास रुक जाता है। कम पानी की वजह से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का अवशोषण भी कम हो जाता है। इसलिए जरूरत पड़ने पर गेहूं को हमेशा पानी देना बहुत जरूरी है। कभी-कभी किसान मिट्टी के प्रकार और पानी की गहराई पर ध्यान दिए बिना नियमित रूप से फसल की सिंचाई करते हैं। जहां पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है वहाँ किसान ज्यादातर सिंचाई के लिए सतही विधियों का इस्तेमाल करते हैं। इन सिंचित क्षेत्रों में, जड़ क्षेत्र में पानी की कमी को पूरा करने के लिए अक्सर पानी की मात्रा वास्तविक आवश्यकता से बहुत अधिक होती है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि अधिक सिंचाई न करें क्योंकि इससे पानी की बर्बादी होती है और यह मिट्टी और फसल दोनों के लिए हानिकारक है। इसलिए, पौधों की संतोषजनक वृद्धि और विकास के लिए मिट्टी में अनुकूल नमी की स्थिति को बनाए रखना आवश्यक है। सिंचाई के पानी के कुशल और किफायती उपयोग करने के लिए जल उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जाना बहुत आवश्यक है।
सिंचाई की आवश्यकता : गेहूँ के खेत से वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से पानी वातावरण में जाता है जो सीधे फसल की वृद्धि और उपज को प्रभावित करता है। समान्यत: गेहूँ में चार से छह सिंचाई (28-42 सैंमी-हैक्टेयर पानी) करने का प्रचलन है। हालांकि, क्राउन रूट और फूल चरण में नमी की कमी उत्पादन पर सबसे अधिक प्रभाव डालती है। सिंचाई की संख्या मिट्टी के प्रकार पर भी निर्भर करती है जैसे बलुई दोमट मिट्टी में 6-8 सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है जबकि भारी मिट्टी में 3-4 सिंचाई ही पर्याप्त मानी जाती है।
This story is from the 15th November 2022 edition of Modern Kheti - Hindi.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।