कपास की खेती उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, व राजस्थान राज्य में मुख्य रुप से की जाती है। कपास को गेंहू के साथ फसल चक्र में सिंचित भूमि में लगाया जाता है। कपास में अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषण हेतु आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलित मात्रा में मिट्टी में होना आवश्यक है। यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती है तो इनके लक्षण पौधे पर दिखने लगते हैं। इन लक्षणों को सही समय से पहचान कर पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने से फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है। अक्सर किसान मुख्य पोषक तत्व जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश वाली खाद देते हैं, लेकिन सुक्ष्म पोषक तत्वों पर अधिकांश ध्यान न देने से पैदावार प्रभावित होती है। कपास में इन पोषक तत्वों की कमी के लक्षण व उनके निदान के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की जाती हैं।
1. नाइट्रोजन: इस तत्व की कमी से पुरानी पत्तियों में पीलापन दिखने लगता है और पत्ते सूखकर गिर जाते हैं। पौधे की बढ़वार में रुकावट आने से पौधे कमजोर हो जाते हैं। नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होने पर पौधों पर रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप अधिक होने लगता है। नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए अमेरिकन कपास में 75 कि.ग्रा. यूरिया, संकर/बी.टी. कपास में 150 कि.ग्रा. यूरिया और देसी कपास में 45 कि.ग्रा. यूरिया प्रति एकड़ की दर से डालें। खाद की आधी मात्रा बौकी आने (जुलाई के अंत में) के समय तथा आधी फूल आने के समय डालें। यदि कपास, गेहूँ के बाद बोई गई है या कम उपजाऊ जमीन में बोई गई है तो नाइट्रोजन वाली खाद की पहली आधी मात्रा बिजाई पर दें। संकर व बी. टी. किस्मों के लिए नाइट्रोजन खाद तीन बराबर हिस्सों में बाँट कर बिजाई के समय, बौकी आने पर तथा फूल आने पर डालें। फसल में डाली जाने वाली कुल नाइट्रोजन की मात्रा में से 8 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति एकड़ का यूरिया के रूप में छिड़काव लाभदायक रहता है। इसमें कीटनाशक दवाइयों को भी मिलाकर फसल में फूल व टिंडे लगते समय छिड़काव करना चाहिए।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 15th August 2023 sayısından alınmıştır.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।