
चना उत्पादन की नई उन्नत तकनीक व उन्नतशील किस्मों का उपयोग कर किसान चने का उत्पादन बढ़ा सकते हैं एवं उच्चतम एवं वास्तविक उत्पादकता के अंतर को कम कर सकते हैं। इस लेख में चने की उन्नत खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी का उल्लेख है।
चने की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु चने की खेती साधारणत: बारानी दशाओं में अधिक की जाती है, असिंचित दशा में चने की खेती का लगभग 78 प्रतिशत क्षेत्र देश के विभिन्न भागों में फैला हुआ है। 22 प्रतिशत क्षेत्र में इसकी खेती सिंचित दशा में भी की जाती है, शरदकालीन फसल होने के कारण चने की खेती कम वर्षा वाले तथा हल्की ठंडक वाले क्षेत्रों में की जाती है।
फूल आने की दशा में यदि वर्षा हो जाती है, तो फूल झड़ने के कारण फसल को बहुत हानि होती है, फसल को क्षति पहुंचने का अन्य कारण ज्यादा वर्षा होने से पौधों में अत्याधिक वानस्पतिक वृद्धि भी है, अधिक वानस्पतिक वृद्धि होने पर पौधे गिर जाते हैं जिससे फूल व फलियां सड़कर खराब हो जाती हैं।
चने के अंकुरण के लिए कुछ उच्च तापक्रम की आवश्यकता होती है, परन्तु पौधों की उचित वृद्धि के लिए साधारणतया ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ में यदि अचानक उच्च तापमान बढ़ जाता है, तब भी फसल को नुक्सान होता है क्योंकि पौधों को पकने के लिए क्रमिक रुप से बढ़ते हुए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
साधारण रूप से चना को बुवाई से कटाई के दौरान 27 से 35 सैंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। यदि मानसून की वर्षा प्रभावी रूप से सितम्बर अंत में या अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में हो जाती है, तब बारानी क्षेत्रों में चना की भरपूर फसल मिलती है।
चने की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
चने की खेती बलुई भूमि से लेकर दोमट तथा मटियार भूमि में की जा सकती है। चने की खेती के लिए दोमट या भारी दोमट मार एवं मडुआ, पड़आ, कछारी भूमि जहां पानी न भरता हो, उपयुक्त मानी जाती है। काबुली चना के लिए अपेक्षाकृत अच्छी भूमि की आवश्यकता होती है। दक्षिण भारत में, मटियार दोमट तथा काली मिट्टी जिसमें पानी की प्रचुर मात्रा धारण करने की शक्ति होती है, में चना की सफलतापूर्वक खेती की जाती है।
この記事は Modern Kheti - Hindi の 1st October 2024 版に掲載されています。
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