संसार में मसाला उत्पादन तथा मसाला निर्यात के हिसाब से भारत का प्रथम स्थान है। इसलिये भारत को मसालों का घर भी कहा जाता हैं। मसाले हमारे खाद्य पदार्थों को स्वादिष्टता तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही हम इससे विदेषी मुद्रा भी अर्जित करते हैं। मेथी मसाले की एक प्रमुख फसल है। इसकी हरी पत्तियों में प्रोटीन विटामिन सी तथा खनिज तत्व पाये जाते हैं। बीज मसाले तथा दवाई के रुप में उपयोगी है। भारत में इसकी खेती व्यवसायिक स्तर पर राजस्थान, मध्यप्रदेष, गुजरात, उत्तरप्रदेष तथा पंजाब राज्यों में की जाती है। भारत मेथी का मुख्य उत्पादक तथा निर्यातक देश है। इसका उपयोग औषधि के रुप में भी किया जाता है।
भूमि तथा जलवायु: मेथी को अच्छे जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश वाली सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। परन्तु दोमट मिट्टी इसके लिए उत्तम रहती है। यह ठण्डे मौसम की फसल है तथा पाले व लवणीयता को भी कुछ स्तर तक सहन कर सकती है। मेथी की प्रारम्भिक वृद्धि के लिये मध्यम आर्द्र जलवायु तथा कम तापमान उपयुक्त है, परन्तु पकने के समय गर्म व शुष्क मौसम उपज के लिये लाभप्रद होता है, पुष्प व फल बनते समय अगर आकाश बादलों से आच्छादित हो तो फसल पर कीड़ों तथा बीमारियों के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जाती है।
मेथी की उन्नत किस्में:
आर एमटी 305: यह एक बहुफलीय किस्म है जिसका औसत बीज भार और कटाई सूचकांक अधिक है। फलियां लम्बी और अधिक दानों वाली होती हैं, जिसके दाने सुडौल, चमकीले पीले होते हैं। इस किस्म में छाछ्या रोग के प्रति अधिक प्रतिरोधकता है। पकने की अवधि 120-130 दिन है। औसत उपज 18 क्विं/ हैक है।
आरएमटी 1: सम्पूर्ण राजस्थान के लिए उपयुक्त है। इसके पौधे अर्ध सीधे एवं मुख्य तना नीचे की ओर गुलाबीपन लिये होता है। बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। पकने की अवधि 140-150 दिन है। इसकी औसत उपज 14-15 क्विं/ हैक है।
हरी पत्तियों के लिए:
पूसा कसूरी: यह छोटे दाने वाली मेथी होती है। इसकी खेती हरी पत्तियों के लिए की जाती है। कुल 5-7 बरी पत्तियों की कटाई की जा सकती है। इसकी औसत उपज 5-7 क्विं/ हैक है।
Diese Geschichte stammt aus der 1st December 2024-Ausgabe von Modern Kheti - Hindi.
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