स्कूल में छुट्टी हो चुकी थी. रुपाली ख़ुशी से फूली न समा रही थी. उस की इच्छा पूरी होने जा रही थी.
प्रौमिस के अनुसार उस के मम्मीपापा ने केरल जाने का टिकट बुक करा लिया था. उस की मौसी वहां रहती थीं. उन के बेटे की भी इच्छा थी कि वे लोग वहां आएं और कुछ दिन उन के यहां ठहरें. फिर सभी एकसाथ घूमेंगेफिरेंगे.
ट्रेन सही समय पर चल दी और रुपाली की आवाज से भी वह रोमांचित थी. यह 3 दिन का सफर था. 2 रातें उन्हें ट्रेन में ही बितानी थी. सफर आसानी से कट गया. रास्ते में कोई परेशानी नहीं हुई. स्टेशन से औटो कर वे लोग मौसी के घर पहुंच गए.
"आप का स्वागत है," मौसी व उन के बेटे ने कहा और फिर बड़े प्रेम से उन्हें घर के अंदर ले गए. उन के घर के आंगन में बहुत सारे रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे. यह देख कर वह अचंभित रह गए.
"मौसी, क्या आप इन फूलों को बेचोगी?" रुपाली ने पूछा.
"अरे, नहीं. मैं कोई मालिन हूं जो फूल बेचूंगी, ये तो हम ने मंगाए हैं और बहुत से हमारी बगिया में भी लगे हैं," मौसी ने कहा.
“पर ये तो बहुत सारे हैं,” उसे उत्सुकता हो रही थी कि इतने सारे फूलों का मौसी क्या करेंगी?
"हम सब इन से 'पूकलम' बनाएंगे,” मौसी ने बताया.
“मतलब?” रुपाली ने पूछा.
"'पूकलम' रंगोली के समान है, जो फूलों की पंखड़ियों से घरघर में बनाई जाती है. इस का दूसरा नाम भी है, यहां रंगोली को 'कोलम' भी कहते हैं," मौसी बोलीं.
“मैं भी पूकलम बनाना सीखूंगी, यह कैसे बनाया जाता है?” रुपाली ने पूछा.
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