कोमल अपनी सहेली पारखी की शादी में शामिल होने के लिए अपनी स्कूटी से दौलतगंज (लखनऊ) आई थी. उसे रात यहीं शादी समारोह में रुकना था. पारखी को ब्यूटीपार्लर से आई ब्यूटीशियन ने बहुत मन से सजाया था. पारखी को दुलहन की तरह सजाने में ब्यूटीशियन ने अपनी पूरी काबीलियत झोंक दी थी. उस का रूप देखते ही बनता था. उस ने लाल रंग की चोली, लहंगा पहना था जो उस पर खूब फब रहा था.
ब्यूटीशियन अपना काम खत्म कर के चली गई तो कोमल ने अपनी आंख का काजल तर्जनी अंगुली पर ले कर पारखी की गरदन पर लगाते हुए ठंडी सांस भरी, "गजब ढा रही है पारखी, डरती हूं कि तेरा यह चांद सा मुखड़ा देख कर दूल्हे मियां कहीं गश खा कर तोरणद्वार पर ही न गिर जाएं."
"नहीं यार, तेरे जीजा इतने मूंजी हैं कि मेरी सुंदरता का नोटिस ही नहीं लेते. आज से पहले मैं पचासों बार विशाल के सामने ऐसा मेकअप कर के जा चुकी हूं. उस बंदे पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता, वह केवल अपनी बात कहता है और मेरी सुनता है." पारखी ने कहने के बाद कोमल की आंखों में झांका, “अरे हां, तेरे उस नए पंछी का क्या रहा, तूने उस के पर काटे या नहीं ?"
"पर काट दिए हैं, " कोमल हंस कर बोली, "अब वह उड़ कर दूसरी डाल पर नहीं बैठने वाला, लेकिन..."
"लेकिन ?" पारखी ने प्रश्नसूचक नजरों से कोमल को देखा.
"मुझे एकांत में अपनी बांहों में भर कर प्यार करने की जिद कर रहा है."
"तो करने दे. तू उस से शादी करने को कह रही है, ऐसा कर पहले उस से शादी कर ले, फिर उस की बांहों में समाएगी तो पछतावा नहीं होगा." पारखी ने समझाया.
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