एक इंटरव्यू के दौरान प्रियंका गुप्ता ने बताया, "मुझे रोजाना 3,000 से 5,000 रुपए के बीच इनकम हो रही है. इस तरह मैं महीने में एक से डेढ़ लाख रुपए कमा रही हूं. मैं कुछ सालों में ही करोड़पति बनने की राह पर चल पड़ी हूं. अगर मैं नौकरी करती तो 40-50 हजार रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाती, लेकिन मुझे इस धंधे में नौकरी से ज्यादा इनकम हो रही है."
शायद यही वजह है कि आज ऊंची डिगरीधारी लोग भी बेहिचक चाय बनाने और बेचने का धंधा करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं, बल्कि कुछ लोग अपनी डिगरी को टपरी या दुकान के आगे बढ़िया से बैनर में दिखा कर समाज के लोगों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं.
जिस तरह देशभर में बेरोजगारों की तादाद बढ़ती जा रही है, ऐसे में नौजवानों को स्वरोजगार के बारे में सोचना बेहद जरूरी हो गया है. अगर आज भी लोग औरों की तरह सिर्फ नौकरी के पीछे भागते रहेंगे, तो बेरोजगारों की तादाद और बढ़ती जाएगी, क्योंकि सरकार ने नौकरियों के पद निकालना तकरीबन बंद कर दिया है.
सरकार चुनाव के समय ऐलान जरूर करती है कि 20 लाख लोगों को रोजगार दिया जाएगा, लेकिन चुनाव होने के बाद नौकरी देने का वादा सिर्फ जुमला बन कर रह जाता है.
बिहार के पूर्णिया जिले की रहने वाली प्रियंका गुप्ता इकोनौमिक्स से ग्रेजुएशन कर चुकी हैं, वे पटना महिला कालेज के सामने चाय की टपरी लगा कर नौजवानों में एक संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि कोई भी काम बड़ा छोटा नहीं होता है.
प्रियंका गुप्ता 2 साल से बैंक की नौकरी की तैयारी कर रही थीं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही थी. वे नौकरी नहीं मिलने के चलते निराश जरूर थीं, लेकिन साथ ही जल्दी से जल्दी आत्मनिर्भर भी होना चाहती थीं, इसलिए वे जगहजगह चाय की दुकानों पर 3 महीने तक बारीकी से स्टडी करती रहीं, तब जा कर वे मन बना पाईं कि उन्हें चाय की दुकान ही खोलनी है.
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